पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/८०

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अध्याय-55 मरुभूमि के चौहान व उनका राज्य चौहान राज्य राजस्थान के दूरवर्ती एक कोने पर बसा हुआ है। मरुभूमि की अन्यान्य रियासतों में चौहानों का राज्य अनेक अच्छाइयों और विशाल होने के कारण साम्राज्य मालूम होता है। यह चौहान राज्य के नाम से प्रसिद्ध है। इसके उत्तर-पूर्व में मारवाड़ राज्य की भूमि है और दक्षिण-पूर्व मे कोलीवाड़ा है। दक्षिण में नमक की झील है और पश्चिमी सीमा पर रेगिस्तान है। चौहान राज्य दो भागों में विभाजित है। पूर्वी चौहान राज्य बीरबाह के नाम से प्रसिद्ध है और पश्चिमी भाग लूनी नदी की दूसरी तरफ है। मरुभूमि के इन चौहानों को अपनी प्राचीनता का बड़ा गर्व है और अपने वंश की श्रेष्ठता पर वे अभिमान करते है। वे अजमेर के मानकराय और बीसलदेव को एवं दिल्ली के अन्तिम हिन्दू राजा पृथ्वीराज को अपना पूर्वज बतलाते हैं। लेकिन जितने भी प्राचीन ग्रन्थ हमे प्राप्त हो सके है, उनके आधार पर हम सहज ही यह कह सकते हैं कि चौहानों की उत्पत्ति सोढ़ा और प्रमार वंश के राजपूतों के बाद में हुई है। क्योकि सिकन्दर के सिन्धु नदी की तरफ आने के दिनों में उन वंशों के लोग शासन कर रहे थे। आठवीं शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक चौहान राज्य अजमेर से सिन्ध की सीमा तक फैला हुआ था। उसकी राजधानियाँ अजमेर, नादोल, जालौर, सिरोही और जूनाचोटन थी। यों तो साधारण तौर पर वे सभी स्वतन्त्रता का जीवन व्यतीत करते थे। परन्तु उनको अजमेर की अधीनता कुछ बातों में स्वीकार करनी पड़ती थी। इसके लिए हमारे पास ऐतिहासिक आधार है। गजनी के महमूद से लेकर अलाउद्दीन द्वितीय और सिकन्दर के समय तक जो मुस्लिम इतिहास लिखे गये हैं, उन सब में इन चौहान राज्यों के वर्णन पाये जाते हैं। अपने बारहवें आक्रमण में मुलतान से अजमेर की तरफ जाते हुए महमूद नादोल के पास से गुजरा था। उसने वहाँ पर लूटमार भी की थी। महमूद के आक्रमण की कथायें अब तक जूनाचोटन के लोगों में कही जाती हैं। वहाँ के लोग उन सुरंगों को अब तक जाहिर किया करते हैं, जिनके द्वारा वहाँ का पहाड़ी दुर्ग उड़ाया गया था। इतिहास की घटनायें जो हमें जानने को मिलती हैं, उनमें कितनी ही बातें स्पष्ट नहीं हो पाती । इसलिए उनका स्पष्टीकरण करना हमारे लिए कठिन हो जाता है और हमें उन बातों को यों ही छोड़ देना पड़ता है। नादोल की लूट और जूनाचोटन के दुर्ग के पतन के सम्बन्ध में विस्तार के साथ में लिखने के लिए हमारे पास सामग्री नहीं है। लेकिन इतिहास से यह बात साफ मालूम होती है कि अपने अन्तिम आक्रमण में गजनी के महमूद ने सिन्ध होकर लौटने का इरादा किया था और उस समय सम्पूर्ण सेना के साथ उसके सर्वनाश की परिस्थितियाँ पैदा हो गयी थीं। ऐसा मालूम होता है कि जूनाचोटन पर उसके आक्रमण के 74