वह - भद्राजून-यह नगर जालौर की एक प्रसिद्ध जागीर है। इस नगर में पाँच सौ घरों की आबादी है। उनमें एक चोथाई मीणाओं की वस्ती है। यह नगर पहाड़ियों के बीच में है और उनमें एक दुर्ग बना हुआ है। वहाँ का सरदार जोधावंशी है। उसकी जागीर जालौर से पाली तक चली गयी है। महेवा-यह नगर लूनी नदी के दोनों किनारों पर बसा हुआ है। राठौरों ने यहाँ आकर पहले पहल जिनको विजय किया था, उनमें से यह एक है। यह नगर सेवॉची में शामिल है और यहाँ से सेवाँची को कर मिला करता है। महेवा के सरदार की उपाधि रावल है, जैसोल में रहा करता है। वर्तमान राजा का नाम सूरतसिंह है। उसके सम्बन्धी सूरजमल की उपाधि भी रावल है। जैसोल से बाईस मील दक्षिण में लूनी नदी के तट पर सिन्द्री का दुर्ग और वहाँ की जागीर उसके अधिकार में है। उन दोनों में आपसी द्वेप रहता है। इसीलिए उन दोनों में से कोई भी राजधानी महेवा में नहीं रहा करता। आपसी द्वेप के कारण उनके चरित्रों का इतना पतन हुआ है कि वे डकैती जैसे कार्यो को करने भी अपना अपमान नहीं समझते। सन् 1813 ई. तक उनके जीवन की जो परिस्थितियाँ थीं, उनका मैंने यहाँ पर उल्लेख किया है। सम्भव है, भविष्य में उनके जीवन का सुधार हो। खारी नदी के किनारे की उपजाऊ भूमि उनके द्वारा खेती के काम मे आती है और वहाँ पर गेहूँ, ज्वार और बाजरा अच्छा पैदा होता है। बालोतरा और तिलवारा यहाँ के दो प्रसिद्ध नगर हैं। वर्ष मे एक बार यहाँ पर मेला लगा करता है। यह मेला राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है। यह बालोतरा का मेला कहलाता है। लेकिन वह लूनी नदी के एक द्वीप के करीब तिलवारा में लगता है। यह तिलवारा महेवा वालों के एक सम्बन्धी की जागीर में है और बालोतरा मारवाड़ के प्रधान सामन्त की अहवा जागीर का अंग है। 73
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