पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/८४

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चार मील की दूरी पर पायी जाती है। लूनी नदी के दोनों किनारों की भूमि में गेहूँ और दूसरे अनाजों की पैदावार होती है। वीरवाह में अनेक थल हैं। फिर भी सूई से सत्रह कोस तक और खास तौर पर राधूपुर की ओर एक लम्बा मैदान है। लूनी के पार के थल ऊँचे टीलों के रूप में पाये जाते हैं। जूनाचोटन से वक्सर तक सम्पूर्ण भाग ऊसर है और उसमें रेत की बहुत-सी ऊँची-ऊंची पहाड़ियाँ हैं। पानी और पैदावार-समस्त चौहान राज्य में और विशेषकर उस हिस्से में जहाँ आवादी अच्छी है, भूमि से साधारण गहराई पर पानी मिल जाता है। कुओं की गहराई दस से वीस पुरुपा तक है। मरुभूमि में पुरुपा की एक माप है। औसत दर्जे का एक पुरुष खड़ा होकर यदि अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर सीधा करे तो उसके पैरों से लेकर हाथों की उँगलियों तक एक पुरुपा कहलाता है। पुरुप की इस प्रकार ऊँचाई के आधार पर इस माप का नाम पुरुपा पड़ा है। दूसरे शब्दों में इस गहराई को लगभग पेंसठ से एक सौ तीस फीट तक कहा जा सकता है। यह गहराई धात के कुओं के मुकाविले में कुछ भी नहीं है। क्योंकि वहाँ के कुओं की गहराई कहीं-कहीं पर लगभग सात सौ फीट तक पायी जाती है। लूनी नदी के किनारे की भूमि में गेहूँ, तिल, मूंग, मोठ, दालें और वाजरा अच्छा पैदा होता है। परन्तु यहाँ के लोग लूट-मार के अधिक अभ्यासी और उन्होंने इसे अपना एक व्यवसाय वना लिया है। जो भूमि खेती के लिए अच्छी नहीं होती, उसे ऊँटों के चरने के लिए छोड़ दी जाती है। ऊँट अधिकतर कांटेदार झाड़ियाँ खाकर रहा करते हैं। यहां भेड़ें और बकरियाँ अधिक संख्या में पायी जाती हैं। वैल और घोड़े तिलवारा के मेले में विकने के लिए . आते हैं। निवासी-सिकन्दर के शत्रु मल्लि अथवा पृथ्वीराज के वंशजों के नाम का हम यहाँ वर्णन करेंगे। जोधपुर के लोगों के द्वारा यहाँ के लोगों को जो अत्याचार सहने पड़ते थे, उनका बदला लेने के लिए इन लोगों ने लूट-मार को अपना एक व्यवसाय बना लिया था और उसके लिए ये लोग सिन्ध गुजरात और मारवाड़ तक जाते थे। चौहान राज्य मे प्रायः सभी जातियाँ पायी जाती हैं। परन्तु उनमें सहरी, खोसा, कोली और भील जाति के लोग शक्तिशाली हैं और इन्हीं जातियों के लोग अधिकतर लूट-मार का कार्य करते हैं। यहाँ का शासन चौहानों के हाथों में है परन्तु प्रत्येक गाँव के रहने वालों में उनकी संख्या बहुत कम पायी जाती है। कोली, भील और पिथिल लोगों की संख्या अधिक है। पिथिल लोगों की गणना नीच जातियों में है परन्तु वे व्यवसायी हैं। खेती के साथ-साथ वे गोंद का व्यवसाय करते हैं। अनेक प्रकार के वृक्षों में से वे लोग गोंद एकत्रित करते हैं और फिर उसे वे वेच डालते हैं। अन्य राजपूतों की तरह चौहान लोग जनेऊ नहीं पहनते। ब्राह्मणों के सम्पर्क से जिन लोगों ने अनेक व्यावहारिक प्रणालियों को अपना लिया है, उनकी तरह चौहानों के जीवन की परिस्थितियाँ नहीं हैं। आचार-विचार सम्वन्धी वहुत-सी बातों में चौहान भिन्न पाये जाते हैं। पूर्वी चौहानों की अपेक्षा यहाँ के चौहान नैतिक गुणों में श्रेष्ठ हैं। उनमें वाल-हत्या के अपराध नहीं पाये जाते हैं। खाने-पीने के विचार में वे लोग बड़ी स्वतन्त्रता से काम लेते हैं। वे किसी प्रकार के पाखण्ड को अपने जीवन में आश्रय नहीं देते। वे चौका लगाकर भोजन बनाने का काम करते हैं। बचा हुआ भोजन वे लोग रख देते हैं और उसके बाद वे उसे खाते हैं। इस प्रकार के विचारों में यहाँ के चौहान बड़ी स्वतन्त्रता से काम लेते हैं। 76