पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/९४

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जातियाँ- मरुभूमि और सिन्धु की घाटियों में जो जातियाँ रहती हैं, यदि उनके ऐतिहासिक जीवन की खोज की जाये तो अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का पता लग सकता है। खोज करने वाले इस बात को आसानी के साथ जान सकेगे कि मरुभूमि की अनेक जातियाँ आज के पहले कुछ और थीं और संकटों में पड़कर उनके जीवन का वातावरण आज कुछ और हो गया है। जीवन की ये परिस्थितियाँ मरुभूमि की अनेक जातियों के सम्बन्ध में मिलेंगी। जिन वंशों का जन्म हिन्दू जाति से हुआ था, वे वंश आज किसी दूसरे ही धर्म की चादर से ढके दिखायी देते हैं। इस विषय में अधिक विस्तार देना आवश्यक नहीं मालूम होता। जीवन के संकटो में इस प्रकार के परिवर्तन बहुत अस्वाभाविक नहीं कहे जा सकते। इसलिए इस वर्णन को हम यहाँ पर समाप्त किये देते हैं। मुसलमानों में कुलोरा और सेहरी नाम की दो जातियाँ ऐसी हैं, जिनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में हम निश्चित रूप से कुछ नहीं लिख सकते । जून, राजूर, ओमुरा, सुमरा, मेरमोर अथवा मोहर, बलोच, लुमरिया, मालूका, सुमेचा, मंगुलिया, दाहिया, जोहिया, कैरो, मगुरिया, ओदुर, बेरोबी, बाबुरी, ताबुरी, चरेन्दी, खोसा, सुदानी और लोहाना आदि जातियों ने अपने प्राचीन धर्म को छोड़कर इस्लाम को स्वीकार कर लिया है। मरुभूमि की इस प्रकार न जाने कितनी जातियाँ-जो प्राचीनकाल में हिन्दू थी-आज इस्लाम के आवरण में दिखायी देती हैं। ऐसा क्यों हुआ है, इसका उत्तर आसानी के साथ नही दिया जा सकता है। एक विस्तृत खोज के बाद जो निष्कर्ष निकाला जा सकता है, वही उसका उत्तर हो सकता है। उनके सम्बन्ध मे बहुत आसानी के साथ, यह कहा जा सकता है कि जीवन की परिस्थितियों और उनके संकटो ने उनमें इस प्रकार के परिवर्तन कर दिये हैं। लेकिन यह बहुत सम्भव है कि ऐतिहासिक खोज के बाद यह उत्तर सही साबित न हो। भाटीयों, राठौरों और चौहानों तथा उनकी शाखाओ मालिनी और सोढा वंश का वर्णन संक्षेप में किया जा चुका है। यहाँ पर सोढा वंश की कुछ विशेप बातो का वर्णन करना आवश्यक मालूम होता है। सोढा हिन्दू-जाति का एक अङ्ग है। परन्तु इस वंश के लोगों के आचरण अब हिन्दुओं के से नहीं रह गये। ये लोग खाने और पीने के विचारों मे अब मुसलमानों के बहुत निकट पहुँच गये हैं। उदाहरण के तौर पर सोढा वंश के लोग उस बरतन मे बिना किसी संकोच के पानी पी लेते हैं, जिसमे उनके सामने मुसलमानों ने पानी पिया हो। यही अवस्था हुक्का पीने के सम्बन्ध में भी है। इस वंश के लोग बहुत दिनो से निर्धन होते जा रहे है और अपनी आर्थिक निर्बलता में उन लोगों ने चोरी और लूट के कार्य को भी अपना लिया। सोढा लोग जितने ही गरीब होते जाते हैं, उनका उतना ही नैतिक पतन होता जाता है। इस गरीबी में वे लुटेरे और चोर बन गये हैं। सेहरीस और खोसा लोग संगठित होकर जहाँ कहीं अवसर पाते हैं, लूटमार करते हैं। सोढा लोग भी उनके संगठन में सम्मिलित हो गये हैं। इस संगठन के लोग दाऊदपोतरा से लेकर गुजरात तक लूट किया करते हैं। सोढा लोग तलवार और ढाल को अपने साथ रखते है। उनकी कमर में एक तेज और भयानक कटार भी रहती है। इनमें से कुछ लोग बन्दूकें भी रखते हैं। उनकी पोशाक भाटी और मुसलमानो से मिलती- 1 86