पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१०८

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सके, जब सबको आपके पास आने और नाहरसिंह की योग्यता आपको बताने की आज्ञा दी थी। अभी तक हम लोग आपके पास पहुँच नहीं पाये थे। देवगढ़ के सम्बंध में किसी ने असत्य समाचार सुनाकर आपको भ्रम में डाल दिया है।" सरदारों की इन बातों से राणा बहुत प्रभावित हुआ। इसी समय उन सरदारों ने नाहरसिंह की प्रशंसा में कुछ बातें राणा से कहीं -“अपने स्वर्गीय सामन्त की आज्ञानुसार हम आपसे इतनी ही प्रार्थना करना चाहते हैं कि मेवाड़ में राजपूतों की मर्यादा को सदा सम्मान दिया गया है। नाहरसिंह अभी से इतना योग्य मालूम होता है कि वह न केवल देवगढ़ जागीर के लोगों का नेतृत्व कर सकेगा, बल्कि वह आपका अत्यंत आज्ञाकारी सामन्त साबित होगा।" राणा ने सरदारों की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। देवगढ़ के विरुद्ध उसने जो आदेश दिया था, उसे वापस ले लिया और नाहरसिंह को उसने गोद लिये जाने के सम्बंध में स्वीकार कर लिया। यदि राजपूतों ने प्राचीन काल की तरह अपनी उन्नति की होती तो उनके राज्यों के सम्बंध में हमें कुछ भी कहने की आवश्यकता न थी। प्राचीन काल से लेकर अब तक उनके इतिहास का गंभीर अध्ययन करने के पश्चात् स्वीकार करना पड़ता है कि राजपूत कभी संगठित होकर नहीं रह सके। आपस में ऐसे अवसरों पर भी संगठित न उनके सामने जीवन और मरण का प्रश्न उपस्थित हुआ है। राजपूत राज्यों ने कभी भं राष्ट्रीय शक्ति का निर्माण नहीं किया और उनमें मराठों की तरह कभी केन्द्रीय शक्ति नही रही। प्रत्येक राजा अपने राज्य का स्वयं अधिकारी था और उसकी रक्षा के लिये वह अपनी सेना रखता था। उसकी कमजोरियों में कोई शक्ति सहायक हो सके, इस प्रकार की शक्तित का निर्माण राजपूतों ने कभी नहीं किया। सामन्त शासन प्रणाली में प्रत्येक राज्य अपने पड़ौसी के लिए जितना घातक सिद्ध होता है, उतना किसी दूरवर्ती राज्य के लिए नहीं। इस प्रकार के शासन में कोई भी राज्य अपनी रक्षा नहीं कर पाता और किसी के आक्रमण के समय पर उसकी शक्तियाँ निर्बल साबित होती हैं। उन साधनों की कमी नहीं है, जिनके द्वारा राजपूतों के चरित्र और स्वभाव का अध्ययन किया जा सकता है। बहुत कुछ उकसाये जाने के बाद भी इन राजपूतों में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता। उनके गुणों में कृतज्ञता, राजभक्ति और सम्मानुप्रियता प्रमुख और आज भी है। इन्हीं गुणों पर एक राजपूत के जीवन का निर्माण हुआ है। वह आज भी इन्हीं गुणों पर आसक्ति रखता है। लेकिन समय के परिवर्तन से उसके गुणों का महत्व अब बहुत घट गया है । जिन गुणों के द्वारा प्राचीन काल में राजपूतों ने ख्याति पायी थी, उन्हीं के कारण राजपूतों का सम्मान आज घटता जा रहा है। यदि किसी राजपूत से पूछा जाये कि मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा अपराध क्या है? इस प्रश्न को सुनकर उत्तर देते हुए वह तुरन्त कहेगा : "उपकारी के प्रति कृतघ्न होना।" उसके इस उत्तर से साफ जाहिर है कि जो कृतघ्नता मनुष्य के जीवन की सबसे बुरी चीज है उससे इन राजपूतों को कितनी बड़ी घृणा है । वास्तव में राजपूत कृतज्ञता को जितना अधिक महत्व देते हैं, कृतघ्नता से उतनी ही वे घृणा करते हैं। राजभक्ति, राजपूतों का प्रधान गुण है। वे अपने राजा के लिए जीते हैं और उसी के लिए मरते हैं। इन राजपूतों के जीवन में राष्ट्र प्रेम अथवा देश प्रेम के स्थान पर हम को राजभक्ति मिलती है। वे अपने राजा के साथ कभी विश्वासघात नहीं कर सकते । एक राजपूत 108