इस बात को बप्पा ने भी अपने साथियों के द्वारा सुना । उसको आने वाली विपत्ति की आशंका होने लगी। इसलिए वह पर्वत के एक गुप्त स्थान में जाकर रहने लगा। यह स्थान बिल्कुल निर्जन था। इस स्थान पर पहले बप्पा के वंशधर कई बार आकर शरण ले चुके थे। बप्पा के साथ बलीय और देव नाम के दो भीलों के लड़के भी थे। बलीय उन्द्रीका और देव अगुन पानोर नामक स्थान का रहने वाला था। इन दोनों लड़कों ने बप्पा का साथ नहीं छोड़ा और दोनों ने बप्पा का किसी भी संकट में साथ देने का निश्चय कर लिया था। इसलिये वे दोनों उसके साथ बराबर बने रहे। बप्पा ने अपनी माँ से सुना था कि मैं चित्तौड़ के मोरी राजा का भान्जा हूँ। इस आधार पर उसने चित्तौड़ जाने का विचार किया। इस समय उसके बहुत से साथी हो गये थे। उनको लेकर वह चित्तौड़ पहुँचा । उन दिनों वहाँ पर मौर्य वंश का मानसिंह नामक राजा राज्य करता था। उसने बप्पा को भान्जे के रूप में पाकर बहुत आदर किया। उसने उसको अपने राज्य का एक सामन्त बनाया और उसके लिए एक अच्छी जागीर का प्रबन्ध कर दिया। मौर्यवंश परमार वंश की शाखा है। मौर्य वंशी पहले मालव के राजा थे और इन दिनों में यह वंश चित्तौड़ के सिंहासन पर आसीन था। उन दिनों राजस्थान में सामन्त प्रथा चल थी। इस प्रथा के अनुसार युद्ध प्रिय लड़ाकू सरदारों को राज्य की ओर से एक जागीर दी जाती थी और इसके बदले में वे सरदार आवश्यकता पड़ने पर अपने राजा की ओर से शत्रु से युद्ध करते थे। राजा मानसिंह के बहुत-से सरदार थे और वे राजा के साथ बड़ी श्रद्धा के साथ व्यवहार रखते थे। लेकिन बप्पा के पहुंचने पर सामन्तों के उस व्यवहार अन्तर पड़ना आरम्भ हुआ। इसका कारण यह था कि राजा मानसिंह बप्पा का बहुत आदर करने लगा था और उसके सामन्त इसे पसन्द नहीं करते थे। इन्हीं दिनों की बात है। किसी विदेशी ने अपनी सेना से साथ चित्तौड़ पर आक्रमण किया। राजा मानसिंह ने उस शत्रु से लड़ने के लिये अपने सामन्तों को आदेश भेजा। सामन्त इसके लिये तैयार नहीं हुए। उनके हृदयों में पहले से ही अन्तर पड़ गया था। वे लोग बप्पा से ईर्ष्या रखते थे।आने वाले शत्रु से सामन्तों के युद्ध नहीं करने पर बप्पा स्वयं युद्ध लिये तैयार हुआ और चित्तौड़ की सेना लेकर वह शत्रु से लड़ने के लिये चला गया। उस समय ईर्ष्या रखने वाले सामन्त भी शत्रु से लड़ने के लिये गये। दोनों ओर से खूब युद्ध हुआ और शत्रु की पराजय हुई। इस युद्ध में बप्पा ने अपने जिस पराक्रम का प्रदर्शन किया, उसको देखकर राजा मानसिंह के सामन्त आश्चर्य में पड़ गये ।शत्रु को पराजित करके बप्पा लौटकर चित्तौड़ नहीं गया बल्कि चित्तौड़ की सेना और सामन्तों के साथ वह अपने पूर्वजों की राजधानी गजनी नगर में पहुँचा। उस समय गजनी में सलीम नाम का राजा राज्य करता था। बप्पा उस पर आक्रमण किया और गजनी का राज्य अपने अधिकार में लेकर म्लेच्छ राजा सलीम की लड़की के साथ विवाह किया। इसके बाद गजनी के राज्य को अपने एक सरदार को सौंपकर वह अपनी सेना के साथ चित्तौड़ आया। राजा मानसिंह के सामन्त बप्पा के कारण असन्तुष्ट थे और उनकी समझ में बप्पा अत्यन्त पराक्रमी था। इसलिये उन लोगों ने बप्पा के साथ अपना मेल-जोल बढ़ाया और बप्पा ने भी परिस्थितियों का लाभ उठाकर राजा मानसिंह को सिंहासन से उतार दिया और चित्तौड़ राज्य का वह शासक बन गया। चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठने के बाद बप्पा ने 'हिन्दू-सूर्य', राजगुरु' और 'चक्कवै' नाम की तीन उपाधियाँ धारण की। 116
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