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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/११९

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अध्याय-13 राणा खुमान का शासन यह लिखा जा चुका है कि बप्पा सम्वत् 784, सन् 728 में चित्तौड़ के राज सिंहासन घर बैठा था। उसके चित्तौड़ से ईरान चले जाने के बाद से लेकर राजा समर सिंह के समय तक का वर्णन इस परिच्छेद में लिखने की हम चेष्टा करेंगे। चित्तौड़ से बप्पा के चले जाने के बाद इस देश में एक नये युग का आरम्भ होता है । बप्पा रावल से लेकर समरसिंह तक चार शताब्दियाँ व्यतीत होती । इन चार सौ वर्षों के भीतर मेवाड़ के सिंहासन पर कुल मिलाकर अठारह राजा बैठे। उनके सम्बन्ध में भट्ट ग्रन्थों में कुछ ऐतिहासिक सामग्री नहीं मिलती। कहीं-कहीं पर जो थोड़ा-बहुत उल्लेख मिलता है, उससे यह जाहिर होता है कि वे राजा बप्पा रावल के योग्य वंशज थे और उनकी कीर्ति आज भी राजस्थान में मौजूद है। आयतपुर के एक शिलालेख से जाहिर होता है कि बप्पा रावल और समरसिंह के बीच में शक्तिकुमार नाम का एक राजा हुआ और वह सम्वत् 1024, सन् 968 ईसवी में मेवाड़ का अधिकारी था। जैनियों के लेखों से पता चलता है कि राजा शक्तिकुमार से चार पीढ़ी पहले सम्वत् 922, सन् 866 ईसवी में अल्लट नाम का एक राजा चितौड़ के राज सिंहासन पर बैठा था। खुमान रासो नाम के एक प्राचीन काव्य ग्रंथ से जाहिर होता है कि बप्पा और समरसिंह के मध्यवर्ती समय में मेवाड़ राज्य पर एक बार मुसलमानों का आक्रमण हुआ था और वह आक्रमण राणा खुमान के समय में हुआ था। राणा खुमान ने सन् 812 ईसवी से लेकर सन् 836 ईसवी तक राज्य किया था। भारतवर्ष में इस समय भयानक अन्धकार फैला हुआ था और उस अन्धकार के दिनों का ऐतिहासिक वर्णन खोजना बहुत कठिन मालूम होता है। फिर भी भट्ट कवियों, आईने अकबरी और फरिश्ता आदि ग्रन्थों की सहायता से जो सामग्री हमें मिल सकी है, उसकी सहायता से हम यहाँ पर कुछ लिखने का प्रयास करेंगे। गुहिलोत वंश की चौबीस शाखाओं का वर्णन पहले किया जा चुका है। इन शाखाओं में से कुछ शाखायें बप्पा के द्वारा उत्पन्न हुई । चित्तौड़ पर अधिकार कर लेने के बाद बप्पा सूरत देश में गये । उसके पास के बन्दर द्वीप पर इस्फगुल नाम का राजा राज्य करता था। इस्फगुल को कुछ अधिकारियों ने बाण राजा का पिता होना स्वीकार किया है। राजा इस्फगुल के एक बेटी थी। बप्पा ने उसके साथ विवाह किया और उसे लेकर चित्तौड़ चले आये। इस स्त्री के गर्भ से बप्पा के अपराजित नाम का एक लड़का उत्पन्न हुआ। इससे पहले बप्पा ने द्वारिका के समीप कालीबाष नगर के परमार राजा की बेटी से भी विवाह किया था। उसके गर्भ से जो लड़का उत्पन्न हुआ था उसका नाम असिल था। 119