वह सब.से बड़ा था। परन्तु अपने मामा के यहाँ रहने के कारण वह अपने पिता के राज्य का अधिकारी न हो सका और उसका छोटा भाई अपराजित सिंहासन पर बैठा।1 असिल ने सौराष्ट्र में अपना एक राज्य स्थापित किया और अपने वंश की एक शाखा की प्रतिष्ठा की। इसलिए उसके वंश के लोग असिल गुहिलोत के नाम से प्रसिद्ध हुए। अपराजित के दो बेटे हुए। एक का नाम खलभोज और दूसरे का नाम नन्दकुमार था। उसका बड़ा बेटा खलभोज सिंहासन पर बैठा। छोटे बेटे नन्दकुमार ने दोदा वंश के राजा भीमसेन को मार कर दक्षिण के देवगढ़ नाम के राज्य को अपने अधिकार में ले लिया। खलभोज (जिसका दूसरा नाम कर्ण था) के मरने के बाद खुमान चित्तौड़ के राजसिंहासन पर बैठा। मेवाड़ के इतिहास में राजा खुमान का नाम बहुत प्रसिद्ध है। उसी के शासनकाल में मुसलमानों ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और आक्रमणकारियों ने चित्तौड़ को घेर लिया। चित्तौड़ की रक्षा करने के लिये अनेक राजपूत राजा युद्ध करने के लिये गये । राजा खुमान ने आक्रमणकारी सेना का मुकाबला बड़ी बुद्धिमानी के साथ किया। मुस्लिम सेना की पराजय हुई। उसके बहुत से सिपाही मारे गये और जो वाकी रहे, वे युद्ध से भाग गये। राजा खुमान ने अपनी सेना के साथ उनका पीछा किया और शत्रु सेना के सेनापति महमूद को गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद उसे राजपूत सैनिक चित्तौड़ ले गये। यहाँ पर महमूद के नाम पर सन्देह पैदा होता है। इसलिए कि इस युद्ध के दो शताब्दी बाद गजनी की सेना लेकर जिस मुसलमान ने भारत पर आक्रमण किया था, उसका नाम भी महमूद था। यह सन्देह उस विवरण से जो नीचे लिखा जायेगा, दूर हो जायेगा। जिस समय खलीफा उमर बगदाद के सिंहासन पर था, उस समय आक्रमणकारी मुसलमान पहले पहल भारतवर्ष में आये। उन दिनों में गुजरात और सिन्धु इस देश में वाणिज्य के लिए प्रसिद्ध हो रहे थे। इन नगरों को अपने अधिकार में लेने के उद्देश्य से खलीफा उमर ने टाइग्रेस नदी के किनारे बसोरा नाम का एक शहर वसाया और उसके बाद अबुलआयास नाम के सेनापति के अधिकार में एक बड़ी सेना देकर उसे भारतवर्ष की ओर भेजा गया। अबुलआयास अपनी सेना के साथ सिंध देश तक आया और अरोर नामक स्थान पर भारत के लोगों ने उसके साथ युद्ध किया । उस युद्ध में अबुलआयास मारा गया । उमर के मरने के वाद खलीफा ऊसमान उस सिंहासन का अधिकारी हुआ। उसने भारत पर आक्रमण करने के लिए बहुत सी तैयारियाँ की, परन्तु वह कुछ कर न सका। उसके बाद खलीफा अलीबगदाद वहाँ के सिंहासन पर बैठा। उसके सेनापति ने सिंध देश पर आक्रमण किया और वह विजयी हुआ। परन्तु उसका अधिकार सिंध देश में अधिक समय तक न रह सका। अली बगदाद के मर जाने पर खलीफा अब्दुल मलिक और खुरासान के बादशाह अजीद के समय में भी भारत पर आक्रमण करने के लिए तैयारियाँ होती रहीं। परन्तु कोई आक्रमण न हुआ । इस बीच में कुछ समय बीत गया। खलीफा वलीद अपने पिता के स्थान पर सिंहासन पर बैठा और राज्य का अधिकारी होने के बाद उसने एक विशाल सेना को साथ में लेकर भारत पर आक्रमण किया। उसने सिंध राज्य और उसके आस-पास के नगरों पर अधिकार कर लिया। कुछ लेखों से पता चलता है कि गंगा के पश्चिमी किनारों पर जो छोटे-छोटे राजा रहते थे उन्होंने कर देना मन्जूर कर लिया था। उस समय इस्लाम की तलवार तेजी पकड़ रही थी और कोई राजा युद्ध करने के लिए सहज ही तैयार न होता था। जिस लेख से इस घटना का यहाँ पर उल्लेख किया है, उसके एक स्थान पर लिखा है कि असिल ने अपने नाम पर एक किले का नाम असिलगढ़ रखा था। असिल के बेटे का नाम पाल था । वह युद्ध में मारा गया 1. 120
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