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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१२४

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सिकर के सिकरवार, ओमरगढ़ के जेनवा, पल्ली के पीरगोटा, खुनतरगढ़ के जारीजा, जरिगाह के खेरर और काश्मीर के परिहार ।। चित्तौड़ पर खुरासान के बादशाह के आक्रमण करने पर इन सभी राजाओं ने अपनी सेनाओं के साथ आकर शत्रु सेना से युद्ध किया था और चित्तौड़ की रक्षा की थी। राजा खुमान को चौबीस बार शत्रुओं से युद्ध करना पड़ा था। उन युद्ध में राजा खुमान ने अपनी जिस बहादुरी का परिचय दिया था। वह रोम सम्राट सीजर की तरह राजपूतों के लिए अत्यन्त गौरवपूर्ण है। उसके शौर्य और प्रताप ने भारत के इतिहास में राजपूतों का नाम अमर कर दिया है। राजा खुमान का प्रताप उसके जीवन काल में ही बहुत बढ़ गया था और उसका प्रभाव अब तक यह है कि उदयपुर में जब कभी कोई किसी विपत्ति में आ जाता है अथवा ठोकर खाकर गिर जाता है तो लोगों के मुँह से निकलता है - "खुमान तुम्हारी रक्षा करें।” लोगों की इन भाव का अर्थ यह है कि सर्वधारण का राजा खुमान पर बहुत विश्वास बढ़ गया था। राजा खुमान ने अपने राज्य का अधिकार छोटे पुत्र जगराज को दे दिया। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उसका विचार बदल गया और राज्याधिकार फिर वापस लेकर सिंहासन पर बैठ गया ।(1) सेतबंदर मालवार के पास है। (2) मन्दोर से आने वाले खैरावी प्रमार वंश की शाखा के वंशज थे। (3) जूनागढ़ (गिरनार) से जो यादव आये थे, उनके वंशजों ने उस देश में बहुत समय तक राज्य किया था। (4) यह नगर गंगा के किनारे दक्षिण में बसा है । (5) इसके संबंध में भट्ट ग्रन्थों में कोई विशेष बात नहीं मिलती है। (6) सोनगढ़े चौहानों की एक शाखा के वंशज थे। (7) फरिश्ता इतिहास में लिखा है कि जिस समय पहले मुसलमानों ने भारत पर चढ़ाई की, उस समय लाहौर में हिन्दू राजा का राज्य था। सन् 761 ईसवी में अफगानों ने लाहौर के हिन्दू राजा के अनेक नगरों पर अधिकार कर लिया था। उस समय तक अफगानों ने इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया था । लाहौर के हिन्दू राजा को पाँच महीने के भीतर सत्ताईस बार युद्ध करने पड़े। अंत में अफगानों ने संधि कर ली। (8) यह परमार कुल की शाखा है और यह राज्य मारवाड़ में है। (9) खैरलोगढ़ के सीहुर सिंध नदी के किनारे राज्य करते थे। भट्ट ग्रन्थों में इनके सम्बन्ध में बहुत विस्तार के साथ लिखा गया है । (10) कुरनगढ़ से जो चंदेल अपनी सेना के साथ युद्ध में गये थे, उनके देश का वर्तमान नाम बुन्देलखण्ड है। इस प्रकार की घटना के फलस्वरूप पुत्रों के साथ उसका संघर्ष बढ़ गया और एक दिन उसके मंगल नामक बेटे ने उसको जान से मार डाला और वह स्वयं राजा बन बैठा ।राज्य के सामन्तों और सरदारों ने इसको सहन न किया। सब ने मिल कर मंगल को राज्य से निकाल दिया। वह अपने पिता के राज्य से उत्तर मरुस्थली के मैदान में चला गया और वहाँ पर जाकर उसने लोद्रवा नामक नगर बसाया और मांगलिया गुहिलोत गोत्र की प्रतिष्ठा की। मंगल के निकाले जाने पर मातृ भाट चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा उसके और उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में चित्तौड़ के राज्य की सीमा की बहुत वृद्धि हुई। महानदी के किनारे और आबू पर्वत के नीचे के विस्तृत मैदानों में जो असभ्य और जंगली जातियों के लोग रहते थे, वे सभी चित्तौड़ की अधीनता में आ गये थे। यहाँ के दो प्रसिद्ध किले जिन राजाओं ने अपनी सेनाओं के साथ आकर चित्तौड़ को सुरक्षित रखने के लिए शत्रुओं के साथ संग्राम किया था, उनके नाम यहाँ पर लिखे गये हैं। 1 - 1. 124