अजमेर, कोटा, सौराष्ट्र और गुजरात के राजाओं के अतिरिक्त हूणों का सरदार अंगुत्सी, उत्तर देश का राजा बूसा, जारीजा का राजा शिव, जंगल देश का राजा जोहिया, शिवपत, कुल्हर, मालून, ओहिर और हल । इनके सिवा और बहुत से राजाओं तथा सरदारों ने अपनी सेना के साथ चित्तौड़ आकर म्लेच्छों के साथ युद्ध किया था। उस युद्ध में मानसिंह की तरफ से और भी अनेक राजाओं ने आकर भाग लिया था जिनके नामों के उल्लेख भट्ट ग्रंथों में नहीं पाये जाते। सिंध देश का राजा दाहिर जब कासिम के द्वारा मारा गया था उस समस उसका लड़का अपने राज्य से भाग कर चित्तौड़ चला गया था और इस समय मानसिंह की तरफ से उसने भी शत्रुओं के साथ युद्ध किया था। राजा मानसिंह - जैसा कि पहले लिखा जा चुका है - मौर्यवंश का था और मौर्यवंश की प्रमुख शाखा परमार वंश के राजा उस समय भारतवर्ष के चक्रवर्ती राजा थे। राजा मानसिंह की ओर से जिन राजाओं और सरदारो ने उस लड़ाई में युद्ध किया था उनमें बप्पा रावल ने युद्ध में अधिक बहादुरी दिखायी थी और उसी के कारण शत्रु लोग पराजित होकर सिंध देश की तरफ चले गये थे। उनका पीछा करता हुआ बप्पा रावल अपने पूर्वजों के राज्य गजनी पहुँच गया था। उस समय वहाँ का राजा सलीम था। उसको पराजित करके उसने अपने भान्जे को वहाँ के सिंहासन पर बिठाया था और राजा सलीम की बेटी से व्याह कर के वह अपने साथ उसे लेकर चित्तौड़ चला आया था। सन् 812 से 836 ईसवी तक राजा खुमान ने चित्तौड़ में राज्य किया। उसके शासनकाल में जिस महमूद ने आकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, उसके सम्बन्ध में ऐतिहासिक ग्रन्थों के आधार पर यह लिखा जा चुका है कि उस आक्रमणकारी का नाम महमूद भूल से लिखा गया है। वास्तव में वह मामून था, जो अपने पिता के राज्य का अधिकारी हुआ था और उसके बाद उसने लगातार भारत पर आक्रमण किये थे। राजा खुमान के समय में चित्तौड़ पर जो आक्रमण हुआ था, उसकी दो शताब्दी के बाद सुबुक्तगीन के बेटे महमूद के आक्रमण आरम्भ होते हैं। इसलिए यह साफ जाहिर है कि राजा खुमान के समय खुरासान के बादशाह मामून ने अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। राजा खुमान के समय के ऐतिहासिक विवरण भट्ट ग्रन्थों में बहुत कम पाये जाते हैं। इसलिए जो सामग्री मिलती है, उसके आधार पर उस समय के वर्णन हम लिखने की यहाँ कोशिश करेंगे। चित्तौड़ पर आक्रमण होने पर राजा खुमान की तरफ से जो नरेश युद्ध में लड़े थे, उनके नाम इस प्रकार पाये जाते हैं। गजनी के गुहिलोत, असीर के टाँक, नादोल के चौहान, रहिरगढ़ के चालुक्य (1) सेतबंदर के जीरकेड़ा, (2) मन्दोर के खैरावी, मगरोल के मकवाना, जेतगढ़ के जोड़िया। तारागढ़ के रीवर, नीरवड़ के कछवाहे, सञ्जोर के कालुम, (3) जूनागढ़ के यादव, अजमेर के गौड़, लोहादुरगढ़ के चन्दाना, कसींदी के डोर, (4) दिल्ली के तोमर, (5) पाटन के चावड़ा, जालौर के सोनगरे, (6) सिरोही के देवड़ा, गागरोन के खींची, पाटरी के झाला, जोयनगढ़ के दुसाना । (7) लाहौर के बूसा, कन्नौज के राठौड़, छोटियाला के बल्ला, पीरनगढ़ के गोहिल, जैसलमेर के भाटी, (8) रोनिजा के संकल, (9) खेरलीगढ़ के सीहुर, मण्लगढ़ के निकुम्प, राजौड़ के बड़गूजर (10) फुरनगढ़ के चन्देल । 1. चित्तौड़ के राज्य दरवार में बहुत से सामन्त रहा करते थे। उनका वर्णन चन्द्र भट्ट ने अपने ग्रन्थ में किया है । यूनान के इतिहासकारों ने लिखा है कि मौर्यवंशी चन्द्रगुप्त के साथ युद्ध में पराजित होने पर सेल्यूकस ने अपनी लड़की चन्द्रगुप्त के साथ व्याह दी थी और उसके साथ उसने मित्रता कर ली थी। उन्होंने यह भी लिखा है कि उन दिनों चन्द्रगुप्त की सेना में बहुत से ग्रीक सैनिक काम करते थे। -- 123
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