अध्याय-14 समरसिंह से लेकर देशद्रोही जयचन्द तक का इतिहास दूसरी शताब्दी में कनकसेन और चौथी शताब्दी में बल्लभी के प्रतिष्ठाता विजय से लेकर तेरहवीं शताब्दी में समरसिंह तक वंश का श्रृंखलाबद्ध वर्णन ऐतिहासिक तथ्य के साथ हमारे सामने नहीं है। इसलिए यहाँ पर हम जो वर्णन करने जा रहे हैं, उसका प्रारम्भ तेरहवीं शताब्दी के समरसिंह से होता है। समरसिंह का जन्म संवत् 1206 में हुआ था। उस समय देश की राजनीतिक परिस्थिति क्या थी, इस पर संक्षेप में कुछ प्रकाश डालना आवश्यक है। दिल्ली में तोमर राजवंश का लोप हो गया था। पाटन नगर में भोला भीम चालुक्य वंश का राजा था। आबू पर्वत पर परमारवंशी जिट लोग अधिकारी थे। मेवाड़ में समरसिंह के वंशज शासन कर रहे थे। मरुभूमि में नाहुर का आतंक चल रहा था और दिल्ली में राजा अनंगपाल का राज्य था। मण्डोर, नागौर, सिंधजलावत और इनके निकटवर्ती देश पेशावर, लाहौर, काँगडा, पहाड़ी राजा लोग तथा प्रयाग, काशी और देवगिरि के राजा दिल्ली की अधीनता में चल रहे थे। जबूलिस्तान से भागकर भाटी लोग भारतवर्ष में आ गये थे और उन्होंने पंजाब के शालिवाहन तन्नोट और मारवाड़ के लोद्रवा को अपने अधिकार में कर लिया था। उसके बाद बरावल नगरी को बसाकर उन लोगों ने जैसलमेर की प्रतिष्ठा का कार्य आरम्भ कर दिया था। यह वही समय था, जब पृथ्वीराज दिल्ली के सिंहासन पर बैठे थे। जैसलमेर के निर्माण के बहुत पहले अरोर में रहने वाले खलीफा के सेनापतियों के साथ भाटी लोगों के युद्ध हुए थे और कई बार उनकी विजय हुई थी। भाटी लोग पहले बहुत साधारण अवस्था में रहे । पृथ्वीराज के समय उनकी उन्नति हुई । अचलेश नाम का एक भाटी सरदार पृथ्वीराज की सेना में सेनापति था और वह भाटी राजा का भाई था। राजा अनंगपाल अपने शासनकाल में भारत के चक्रवती राजा थे। वे तोवर राजा विहुलन देव से उन्नीसवीं पीढ़ी में हुए थे। राजा विक्रमादित्य ने जब भारतवर्ष की राजधानी उज्जैन में कायम की थी, उस समय दिल्ली का महत्व बिल्कुल क्षीण हो गया था। उसके बाद राजा विहलन देव ने दिल्ली की फिर उन्नति की थी और अनंगपाल के नाम से वह दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अजमेर के चौहान दिल्ली की अधीनता में रहते थे और उनका स्थान दिल्ली राज्य के सामन्तों में था। 126
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