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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१२७

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विहलन देव के शासन काल में अजमेर के चौहानों को अधिक श्रेष्ठता मिल गयी थी और उस समय से उनकी उन्नति आरम्भ हुई थी। जिन दिनों में दिल्ली के राजा अनंगपाल के साथ कन्नौज के राठौड़ राजा का युद्ध हुआ, उन दिनों में सोमेश्वर नाम का एक चौहान राजा अजमेर के सिंहासन पर था। सोमेश्वर ने उस युद्ध में राजा अनंगपाल की सहायता की । उससे प्रसन्न होकर अनंगपाल ने सोमेश्वर के साथ अपनी लड़की का विवाह कर दिया। इसी लड़की से पृथ्वीराज का जन्म हुआ। इसके कुछ दिन पूर्व राजा अनंगपाल ने अपनी एक लड़की का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ किया था। उस लड़की से जयचंद का जन्म हुआ था। जयचंद पृथ्वीराज से बड़ा था। अनंगपाल के कोई बेटा न था, इसलिए उसने पृथ्वीराज को अपने राज्य का अधिकारी बना दिया। उस समय पृथ्वीराज की अवस्था आठ वर्ष की थी। इसके परिणामस्वरूप राठौड़ो और चौहानों में भयानक ईर्ष्या हो गई और वह ईर्ष्या दोनों वंशों के सर्वनाश का कारण बन गई। पृथ्वीराज जब दिल्ली के सिंहासन पर बैठा, जयचंद ने न केवल उसकी प्रधानता को मानने से इनकार कर दिया, बल्कि उसने अपनी श्रेष्ठता की घोषणा की। इस अवसर पर अनहिलवाड़ा पट्टन के राजा ने,जो चौहानों का पुराना शत्रु था, जयचंद का समर्थन किया और मण्डोर के परिहार राजा ने उसका साथ दिया। पृथ्वीराज के साथ मण्डोर के परिहार राजा की शत्रुता का कारण लगभग इन्ही दिनों का था। मण्डोर के राजा ने पृथ्वीराज के साथ अपनी लड़की के विवाह का निश्चय किया था । परन्तु सब कुछ तय हो जाने के बाद मण्डोर राजा ने विवाह करने से इन्कार कर दिया। पृथ्वीराज और उसके बीच की यह घटना एक वैमनस्य के रूप में बदल गयी और उसके कुछ ही दिनों के बाद दोनों राजाओं के बीच जो युद्ध हुआ, उससे शत्रुओं को पृथ्वीराज के पराक्रम का पूरा परिचय मिला। इस प्रकार की घटनाओं से जयचंद हृदय में पृथ्वीराज के प्रति ईर्ष्या की वृद्धि होती गई। पट्टन और मण्डोर के राजा इसके सम्बन्ध में जयचंद के पूरे साथी बन गये। इस आपसी अशान्ति और ईर्ष्या का लाभ मोहम्मद गौरी ने उठाया। पृथ्वीराज की बहन पृथा का विवाह चित्तौड़ के राजा समरसिंह के साथ हुआ था। इस सम्बन्ध ने पृथ्वीराज और समरसिंह को मित्रता की एक जंजीर में बाँध दिया ताकि वे दोनों अपने जीवन काल में एक दूसरे से फिर अलग न हो सके। समरसिंह, जैसा कि ऊपर लिखा गया है, पृथ्वीराज का बहनोई था और अनहिलवाड़ा पट्टन के राजा के साथ भी समरसिंह का वैवाहिक सम्बन्ध था। फिर भी पृथ्वीराज के साथ समरसिंह की जो घनिष्ठता और मित्रता थी, वह पट्टन के राजा के साथ न थी। यही कारण था कि अनहिलवाड़ा पट्टन का राजा समरसिंह से प्रसन्न न था। समरसिंह ने कई बार पृथ्वीराज की सहायता की थी और सबसे पहला अवसर वह था, जव उसकी सहायता से नागौर में सात करोड़ रुपये का सोना पृथ्वीराज को मिला था, यह खजाना प्राचीन समय से नागौर के उस स्थान में रखा हुआ था। इससे कन्नौज और अनहिलवाड़ा पट्टन के राजाओं के हृदय में पृथ्वीराज के प्रति और भी अधिक ईर्ष्या की वृद्धि हुई। वे किसी प्रकार पृथ्वीराज के सर्वनाश के लिए उपाय ढूँढने लगे और उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन दोनों ने गजनी के शहाबुद्दीन को भारत में आने के लिए आमंत्रित किया । जयचंद ने कई छोटे राजाओं को मिलाकर अनहिलवाड़ा पट्टन, मन्डोर और धार के राजाओं के परामर्श से एक योजना तैयार की और उस योजना के अनुसार शहाबुद्दीन के द्वारा वह पृथ्वीराज का सर्वनाश करना चाहता था। पृथ्वीराज को इन सब वातों का पता हो 127