पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पर विचार करने लगी। धात्री की बातें उसे सही मालूम हुई । उसने बडी देर तक धात्री के साथ बातें की। अब उसकी समझ में आया कि चित्तौड़ से राजकुमार चूंडा को हटाकर मैंने बहुत बड़ी भूल की है। इन बातों पर जितना ही उसका ध्यान गया, उतना ही उसको धात्री की बातों पर विश्वास होने लगा। उसने गम्भीरता के साथ चित्तौड़ की परिस्थिति को समझने की कोशिश की । उसको इन्हीं दिनों में मालूम हुआ कि रणमल्ल की आंखें चित्तौड़ के शासन पर लगी हैं। मोकल के प्रति भी रणमल्ल के विचार अच्छे नहीं हैं। उसे यह भी मालूम हुआ कि चूंडा के दूसरे भाई रघुदेव को रणमल्ल ने ही धोखे से मरवा डाला था। राजमाता की शंकायें अव बढ़ने लगीं। चिन्ताओं के मारे वह घबराने लगी.। वह सोचने लगी कि जिसने रघुदेव की हत्या करायी है, वह राज्य के लोभ में मोकल का भी वध करा सकता है। राजकुमार चूंडा के प्रति उसके हृदय में ईर्ष्या पैदा कराने का कार्य भी रणमल्ल ने ही किया था, इसका स्मरण अव उसे वार बार-बार होने लगा। वह जितना ही सोचती थी, उतना ही उसे संकटों से घिरा हुआ चित्तौड़ दिखायी देता था। उसकी समझ में आ गया कि सम्पूर्ण मेवाड़ के शासन को मेरे पिता ने अपने अधिकार में कर रखा है। राज्य में छोटे और बड़े जितने भी कर्मचारी हैं, वे मेरे पिता के द्वारा मारवाड़ से आये हैं और राज्य के ऊंचे पदों पर सभी राठौड़ राजपूत हैं। उन स्थानों पर मेवाड़ के जो लोग काम करते थे, उनको नौकरियों से अलग कर दिया गया है और चित्तौड़ के सब से बड़े पद पर जैसलमेर का एक भाटी राजपूत है। राजमाता को अब धात्री की बातों पर पूर्ण विश्वास हो गया। वह सोचने लगी कि इस संकट से चित्तौड़ को बचाने का अब उपाय क्या है। यदि सावधानी के साथ कोई उपाय न किया गया तो चित्तौड़ का राज्य सिंहासन राठौड़ो के हाथ में चला जायेगा। बड़ी चिन्ता और घबराहट के साथ इस संकट के समय उसने राजकुमार चूंडा की याद की और उसे बुलाने के लिए उसने अपना दूत भेजा। जिस समय चूंडा चित्तौड़ छोड़कर मान्डू राज्य में गया था, उसके साथ चित्तौड़ के दो सौ भील अपने परिवारों को चित्तौड़ में छोड़कर उसके साथ गये थे। राजकुमार चूडा ने अपनी विमाता का पत्र पाकर चित्तौड़ के भीलों से परामर्श किया और अपने आने के पहले उसने उन भीलों को चित्तौड़ भेज दिया। उनके द्वारा उसने विमाता के पास अपना एक सन्देश भी भेजा। उसे सुनकर मोकल की माता को बहुत सन्तोष मिला । भीलों ने आकर उसको जो बातें समझायीं, उसने उन्हीं के अनुसार सब कुछ करने का निश्चय किया। उन्हीं दिनों में दिवाली का त्यौहार था। उसके उत्सव को मनाने के लिए मोकल अपने आदमियों और माता के साथ गोगुन्दा नामक नगर में गया। राजमाता ने वहाँ पर दिन भर गरीबों को भोजन कराया। शाम हो जाने पर अंधेरा होने के साथ-साथ राजकुमार चुंडा भेष बदले हुए घोड़े पर अपने निर्भीक चालीस सवारों के साथ वहाँ पर आ गया। उन सव के आगे राजकुमार चूंडा वहाँ था। राजमाता ने उसे पहचान लिया। चूंडा ने आते ही राणा मोकल को अभिवादन किया। सब के सब चित्तौड़ की तरफ चले और सिंह द्वार पर पहुँच गये। उनके साथ पूर्व निश्चय के अनुसार और साथ के सभी लोग थे। रामपोल नामक द्वार पर चित्तौड़ के द्वारपालों ने उन्हें रोका । उनको उत्तर देते हुए चूंडा ने कहा, "हम लोग चित्तौड़-राज्य के हैं और धीरे गाँव में रहते हैं, राणा के साथ गोगुण्दा गये थे और राणा को दुर्ग में पहुँचाने के लिए हम लोग यहाँ आये हैं।" - - 145