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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१४४

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वहाँ पर म्लेच्छों ने आक्रमण किया था, उस युद्ध में वह मारा गया। गया के संग्राम में जाने के पहले राणा को अपने लौटकर आने में संदेह उत्पन्न हुआ, इसलिए पाँच वर्ष के वालक मोकल को राजतिलक करने का उसने विचार किया। सारी व्यवस्था की गयी और अभिषेक के समय राजकुमार चूंडा ने स्वयं मोकल के माथे पर राजतिलक किया। उस दिन से राणा मोकल चित्तौड़ के सिंहासन का अधिकारी वना। राजकुमार चूंडा के मनोभावों में मोकल के प्रति सत्यता और उदारता थी। मोकल की अवस्था बहुत छोटी थी। इसलिए चूंडा स्वयं राज्य का प्रबंध देखने लगा। उसके इस कार्य में उसकी सहानुभूति के सिवा और कुछ न था। परन्तु मोकल की मां इस बात से ईर्ष्या करने लगी। राज्य का प्रबंध वह स्वयं अपने हाथों में रखना चाहती थी। इसलिए उसने समय-समय पर चित्तौड़ के लोगों से कहना आरम्भ किया कि राजकुमार चूंडा स्वयं राणा बनना चाहता है। उसकी इस बात को चन्द्र ने भी सुना । उसके हृदय को आघात पहुँचा । उसने मोकल की माँ को इस बात का विश्वास दिलाने की चेष्टा की कि मैं राज्य पाने की अभिलाषा नहीं रखता। मोकल के प्रति मैं प्रेम करता हूँ और राज्य का भविष्य उज्जवल देखना चाहता हूँ। इस समय मोकल की अवस्था बहुत छोटी है। इसलिए मैं राज्य की देख-भाल करता हूँ। लेकिन यदि आपको मेरा यह कार्य पसन्द नहीं है तो मैं चित्तौड़ छोड़कर चले जाने के लिए तैयार हूँ। राजकुमार चूंडा की बातों से मोकल की माता को सन्तोष न मिला। इसलिए राजकुमार चूंडा चित्तौड़ छोड़कर मांडू राज्य चला गया। वहाँ के राजा ने उसका बहुत सम्मान किया और अपने राज्य का हल्लर नामक इलाका उसको दे दिया। राजकुमार चूडा वहीं पर रहने लगा। चित्तौड़ के राज सिंहासन पर पाँच वर्ष का बालक मोकल था और राज्य के अधिकार उसकी माता के हाथ में थे। चूंडा के चले जाने के वाद मोकल के ननिहाल के लोगों की चित्तौड़ में आना आरम्भ हुआ और एक-एक करके वहां के आदमियों से चित्तौड़ के समस्त स्थान भरे दिखाई देने लगे। उन सब के साथ मोकल का मामा जोधा और उसका नाना राठौड़ राजपूत रणमल्ल भी मारवाड़ छोड़ कर चित्तौड़ में आ गया था। इस प्रकार मन्दोर राज्य के लोगों का चित्तौड़ में बढ़ता हुआ आधिपत्य और अधिकार देखकर सिसोदिया वंश की एक बूढ़ी धात्री को बहुत दुःख हो रहा था। राजकुमार चूंडा का पालन-पोषण उसी ने किया था। इस समय के दृश्य को देखकर वह धात्री सोचा करती थी कि मेवाड़ राज्य के भविष्य में क्या परिवर्तन होने वाला है । क्या बप्पा रावल के सिंहासन पर राठोड़ लोगों का अधिकार होगा? क्या सिसोदिया वंश अब मिटने वाला है ? इस प्रकार की बहुत सी बातों को सोचकर वह धात्री मन-ही-मन बहुत चिन्तित रहने लगी। एक दिन बहुत-कुछ सोच-समझकर यह धात्री मोकल की माता के पास गई और अत्यन्त नम्र शब्दों में उसने कहना आरम्भ किया-“तुम राजमाता हो। तुम्हारा छोटा वालक मोकल इस राज्य का स्वामी है । मैं तुम्हारी एक दासी हूँ और जीवन भर मैंने इस सिसोदिया वंश के कल्याण के लिए भगवान से प्रार्थना की है। इस समय चित्तौड़ में जो है, उसको देखकर मेरे प्राण कांप रहे हैं। मैं नहीं जानती कि तुम कुछ समझती हो या नहीं। परन्तु मुझे साफ-साफ दिखाई देता है कि अव चित्तौड़ में सिसोदिया वंश के स्थान पर राठौड़ वंश की जड़ मजबूत हो रही है।" धात्री के मुँह से इन बातों को सुनकर मोकल की माता सन्नाटे में आ गयी । उसको स्वयं अव इन बातों पर सन्देह होने लगा और वह गम्भीरता के साथ धात्री की कही बातों हो रहा 144