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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१६२

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लड़की के बड़े होने पर पृथ्वीराज ने उसके विवाह की तैयारियाँ की और बूंदी के हाड़ा वंशीय राजा सूरजमल के साथ उसका विवाह कर दिया। इस विवाह से रलसिंह को वहुत आघात पहुँचा । उसने सूरजमल को जो उसका एक नजदीकी रिश्तेदार था और उसकी एक बहन राणा को व्याही थी, अपना शत्रु मान लिया और उसको दण्ड देने के लिए वह अवसर की खोज में रहने लगा। कुछ दिनों में अहेरिया का उत्सव आया। राणा रत्नसिंह अपने सरदारों और सामन्तों को लेकर उस उत्सव को मनाने के लिए शिकार खेलने के उद्देश्य से जंगल की तरफ रवाना हुआ। बूंदी का राजा सूरजमल भी उसके साथ चला। ; सव के साथ राणा एक भयानक जंगल में पहुँच गया और उसके बाद आगे बढ़कर वह एक ऐसे स्थान पर पहुँच गया, जहाँ पर सूरजमल को छोड़कर उसके साथ का कोई दूसरा आदमी न पहुँचा । राणा रत्नसिंह के मन में सूरजमल के प्रति ईर्ष्या का भाव तो था ही, अवसर पाकर और तलवार निकाल कर उसने सूरजमल पर आक्रमण किया। तलवार के लगते ही सूरजमल अपने घोड़े से गिर गया और सम्हल कर उसने अपनी तलवार का वार राणा पर किया। दोनों में कुछ देर तक लड़ाई हुई। जो लोग चित्तौड़ से साथ गये थे, वे सव के सब उस समय उन दोनों के पास न थे। राणा रलसिंह लड़ता हुआ सूरजमल के द्वारा मारा गया। रत्नसिंह ने चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठकर पाँच वर्ष तक मेवाड़ का राज्य किया और कई बातों में उसने अपने राज्य की उन्नति | वह होनहार था और उसके द्वारा मेवाड़ राज्य की उन्नति के सम्बन्ध में राज्य के मन्त्रियों ने बड़ी-बड़ी आशायें की थीं। परन्तु अपने ही आचरण के कारण उसकी अकाल मृत्यु हुई। उसके शासन काल में मेवाड़ राज्य पर किसी शत्रु ने आक्रमण नहीं किया। सम्वत् 1591 सन् 1535 ईसवी में विक्रमाजीत चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा । राणा संग्रामसिंह और राणा रत्नसिंह में जितने गुण थे, विक्रमाजीत में उतने ही अवगुण थे। उसमें अयोग्यता थी, अदूरदर्शिता थी। उसके इस प्रकार के अवगुण सिंहासन पर बैठने के बाद इतने बढ़े कि राज्य के सभी मन्त्री और सरदार उससे असन्तुष्ट रहने लगे। राणा विक्रमाजीत ने भी मन्त्रियों और सरदारों की कुछ परवाह न की और शासन के सम्बन्ध में अपनी मनमानी करता रहा। राज्य के जिन आदमियों के साथ उसकी मैत्री का अधिक सम्बन्ध रहता, वे राज्य के छोटे आदमी थे और उनके अधिक सम्पर्क से राणा के सम्मान को आघात पहुँच रहा था । मन्त्रियों और सरदारों की अप्रसन्नता का यह भी एक बड़ा कारण था। उसके इस प्रकार के व्यवहारों से मंत्री और सरदार अपना अपमान अनुभव करते थे। इस प्रकार की बातों का परिणाम यह हुआ कि राणा के साथै सरदारों की कोई सहानुभूति न रह गयी। दूसरे अनेक अवगुणों के साथ-साथ राणा विक्रमाजीत आलसी और अकर्मण्य भी था। राज्य का शासन ठीक न होने के कारण सम्पूर्ण राज्य में अराजकता फैल रही थी। पर्वत पर रहने वाले जंगली लोग राज्य के सिपाहियों की परवाह न करते थे और राज्य को वे लोग तरह-तरह की हानि पहुँचाने लगे। सरदार और मंत्री इस प्रकार के मामलों में खामोश हो रहे थे। राणा विक्रमाजीत की इस अयोग्यता के कारण मेवाड़ राज्य निर्बल पड़ने लगा। इस प्रकार की निर्बलता और राज्य में फैली हुई अराजकता अच्छी नहीं होती। शत्रु लोग मेवाड़ राज्य की इन परिस्थितियों का जिन दिनों में दूर से अध्ययन कर रहे थे, गुजरात का बादशाह वहादुर अपने राज्य में बैठा हुआ चित्तौड़ से अपना पुराना बदला लेने की तैयारी कर रहा था। सीसोदिया वंश के राजा पृथ्वीराज ने गुजरात के वादशाह मुजफ्फर को पराजित किया । 162