पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१६३

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था और उसे कैद करके राजपूत चित्तौड़ ले गये थे। गुजरात के लोग अपने इस अपमान को भूले न थे। इसलिए गुजरात और मालवा में जितनी सेना थी, सब को लेकर वादशाह वहादुर ने राणा पर आक्रमण किया। वादशाह वहादुर के द्वारा होने वाले आक्रमण का समाचार पाकर राणा विक्रमाजीत ने चित्तौड़ में युद्ध की तैयारी की और अपनी सेना लेकर उसने बादशाह की फौज का सामना किया। दोनों ओर से युद्ध आरम्भ हो गया। अपनी अयोग्यता के कारण राणा विक्रमाजीत ने अपने सैनिकों की सहानुभूति को खो दिया था। उसका फलं यह हुआ कि गुजरात के बादशाह के साथ युद्ध करता हुआ विक्रमाजीत संकट में पड़ गया। जिस स्थान पर यह युद्ध हो रहा था, वह बूंदी राज्य के अन्तर्गत लैचा नामक मुकाम का विस्तृत मैदान था। राणा विक्रमाजीत बादशाह की फौज के सामने ठहर न सका । उसको पराजित करके बादशाह वहादुर ने अपनी फौज के साथ चित्तौड़ पर आक्रमण किया। उस समय मेवाड़ राज्य के सरदारों और सामन्तों ने युद्ध की तैयारी की और अपनी सेनाओं को लेकर उन लोगों ने चित्तौड़ के बाहर गुजरात की फौज का सामना किया। दोनों ओर से घमासान संग्राम आरंभ हुआ। पिछले पृष्ठों में राणा रायमल के शासन काल में सूरजमल की लड़ाई लिखी जा चुकी है। सूरजमल ने चित्तौड़ को प्राप्त करने के उद्देश्य से मुसलमान बादशाह की फौज लेकर यह युद्ध किया था। राणा रायमल के लड़के पृथ्वीराज ने उसको कई बार पराजित किया था, उस समय सूरजमल ने चित्तौड़ से निराश होकर मेवाड़-राज्य के बाहर देवल नगर बसाया था। आजकल सूरजमल का वंशधर देवल नगर का राजा था। चित्तौड़ पर बादशाह बहादुर के आक्रमण करने पर उसका खून खौला । चित्तौड़ का यह अपमान उसके पूर्वजों का अपमान था। अपनी सेना लेकर चित्तौड़ की रक्षा करने के लिए वह बादशाह बहादुर की फौज के सामने आया। उसके साथ-साथ बूंदी का राजकुमार अपने साथ पाँच सौ सैनिकों को लेकर चित्तौड़ पहुँच गया। सोनगरे , देवल और दूसरे स्थानों के राजपूत भी मेवाड़ राज्य की रक्षा करने के लिए युद्ध में आये। मुसलमान बादशाहों ने जितने आक्रमण अब तक चित्तौड़ पर किये थे, बादशाह बहादुर का आक्रमण उन सब में भयानक था। उसकी फौज में एक योरोपियन गोलन्दाज भी था। उसका नाम लाबी खाँ था। उसी की सहायता से बादशाह बहादुर ने चित्तौड़ का विध्वंस किया। चित्तौड़ के बाहर भयानक संग्राम हुआ। राजपूतों ने चित्तौड़ को बचाने के लिए कोई कसर न छोड़ी। लाबी खाँ होशियार गोलन्दाज था । युद्ध स्थल के करीब बीका पहाड़ी के नीचे उसने एक विशाल सुरंग खोदी और उसमें बारूद भरकर उसमें आग लगा दी। आग लगते ही उस बारूद में भयानक आवाज हुई । जहाँ पर राजपूत खड़े हुए बादशाह की फौज के साथ युद्ध कर रहे थे,वहाँ पर बारूद से बहुत दूर तक की जमीन उड़ गयी । जिसके कारण राजपूत सेना के बहुत से सैनिक जलकर खाक हो गये। चित्तौड़ के दुर्ग के हिस्से टूट गये । राजपूत सेना में जो लोग वचे, वे इधर-उधर भागने लगे। बादशाह की फौज आगे बढ़ने लगी। इस समय दुर्गाराव ने अपने शक्तिशाली सैनिकों के साथ आगे बढ़कर भयानक मारकाट की । बादशाह की फौज एक साथ दुर्गाराव पर टूट पड़ी। जिस समय यह भीषण मारकाट हो रही थी, सीसोदिया वंश की रानी जवाहर बाई ने युद्ध में प्रवेश किया और उसने अपने भाले से बादशाह के बहुत से सैनिकों का संहार किया। अंत में वह मारी गयी । उसके मरने के बाद सूरजमल के वंशज वाघ जी ने अपने सैनिकों के साथ गुजरात की फौज के साथ भीषण युद्ध किया। लेकिन युद्ध की गति भयानक होती गयी । चित्तौड़ की तरफ से लड़ने वाले बहुत-से शूरवीर मारे गये। उसके बाद राजपूत सेना निर्बल पड़ने लगी। 163