पन्ना के तेजी के साथ उसने उसमें कपड़ा बिछाकर सोते हुए राजकुमार उदयसिंह को उसमें लेटा दिया और अनेक प्रकार के पत्तों से उस झाबे को ढंक दिया। इसके बाद उस झाबे को दुर्ग से बाहर ले जाने के लिए उसने उस बारी से कहा। बारी ने तुरन्त आज्ञा का पालन किया । वह झाबे को सिर पर रख कर दुर्ग से बाहर निकल गया। उसके हटते ही पन्ना धाय ने उदयसिंह के स्थान पर अपने छोटे बालक को सुला दिया। वारी झाबे को लेकर वहाँ से चला गया। उसके थोड़ी ही देर बाद बनवीर वहाँ आ पहुँचा। उसके हाथ में तलवार थी। उसको देखते ही पन्ना धाय का कलेजा धक-धक करने लगा। इसी समय बनवीर ने पन्ना धाय की तरफ देखा और पूछा- "उदयसिंह कहाँ है ? मुख से कुछ न निकला। घबराहट के साथ उसने अपने सोते हुए बालक की तरफ संकेत किया। बनवीर ने उस बालक की तरफ देखा और बात की बात में उसने अपनी तलवार से उसके टुकड़े कर डाले । पन्ना धाय ने अपने बालक की हत्या का यह दृश्य अपने नेत्रों से देखा । उसका कलेजा अस्थिर हो रहा था, उसके प्राण काँप रहे थे। उसके नेत्रों से आसुओं की धारा बह निकली। परन्तु उसके मुँह से किसी प्रकार आवाज न निकली । महल में रानियों और दूसरी दासियों को इस दुर्घटना का कोई समाचार उस समय नहीं मिला। बनवीर वहाँ से चला गया। पन्ना धाय ने उसके जाने के बाद अपने बालक के मृत शरीर की तरफ एक बार देखा और बहुते हुए आँसुओं को अपने आँचल से पोछती हुई वह धीरे-धीरे दुर्ग के बाहर निकली। चित्तौड़ के पश्चिमी तरफ बेडस नदी बहती थी। उसके किनारे पर एक जनहीन स्थान पर रात के समय वह बारी (नाई) अपने निकट राजकुमार के झावा को रखे हुए चुपचाप खड़ा था। उदयसिंह अब भी सो रहा था । पन्ना धाय वहाँ पर आ गई और राजकुमार को सुरक्षित रखने के लिए बाघ जी के लड़के सिंहाराव के पास पहुँच कर प्रार्थना करते हुए उसने सव समाचार कहा । सिंहाराव ने धाय की बातों को सुनकर और घबराकर अपनी असमर्थता प्रकट की। पन्ना धाय वहाँ से निराश होकर दुर्गपुर की तरफ चली और वहाँ के रावल यशकरण के पास जाकर उसने अपनी विपदा सुनाई । परन्तु बनवीर के भय से वह भी राजकुमार को अपने यहाँ रखने का साहस न कर सका। इस समय पन्ना धाय के सामने बड़ा संकट था। रात का समय था और भय के कारण कोई भी राजकुमार को अपने यहाँ रखने के लिए राजी नहीं होता था। इस समय कुछ भीलों ने उसका साथ दिया। इस अवस्था में अरावली के भीषण पहाड़ी रास्तों को पार करती हुई और ईडर के कठिन रास्तों से होकर वह राजकुमार को लिए हुए कमलमीर के दुर्ग में पहुँची। दीपा के वणिक वंश में पैदा होने वाला आशाशाह नामक एक आदमी उस समय कमलमीर में राज्य करता था। पन्ना ने उससे मिलकर और उसकी गोद में राजकुमार को देकर नम्रता के साथ उसकी रक्षा करने के लिए उससे प्रार्थना की। पन्ना धाय की बातों को सुनकर आशाशाह ने राजकुमार की रक्षा करने में भय का अनुभव किया। परन्तु अपनी माता के मुख से इसके सम्बन्ध में कुछ उपदेश भरी बातों को सुन कर वह राजकुमार को अपने यहाँ रखने के लिए तैयार हो गया। राजकुमार को इस प्रकार संरक्षण में देकर पन्ना धाय वहाँ से चली आई। आशाशाह ने राजकुमार को अपना भतीजा कहकर लोगों में जाहिर किया। बालक उदयसिंह उसके बाद वहीं रहने लगा। कुछ दिनों के बाद आशाशाह के यहाँ कई राजपूत गये। उन सरदारों ने राजकुमार उदयसिंह को देखा। उसे देखकर सरदारों को इस बात का विश्वास नहीं हुआ कि वह आशाशाह का भतीजा है । वे सरदार कमलमीर के दुर्ग से चले गये। परन्तु उदयसिंह के सम्बन्ध में मेवाड़ के सरदारों और सामन्तों में एक अफवाह फैलने लगी। जो बातें लोगों में इधर-उधर फैली, 167
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