पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१६६

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अध्याय-19 विक्रमाजीत का वध, पन्ना धाय का त्याग व राणा उदयसिंह चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठने के कुछ ही समय बाद बनवीर के मनोभावों में परिवर्तन होने लगा। उसे मालूम था कि राणा विक्रमाजीत अभी जीवित है। इस राज्य का वास्तव में वही अधिकारी है और उसके बाद राणा संग्रामसिंह का छह वर्ष का बालंक उदयसिंह इस राज्य का उत्तराधिकारी है। राज्य के सरदारों के असंतोष से विक्रमाजीत इस सिंहासन से उतारा गया है। वह कभी भी इस सिंहासन पर फिर बैठ सकता है। यदि ऐसा कोई समय मेरे सामने पैदा हुआ और मुझे सिंहासन से हटना पड़ा तो वह मेरा एक असहनीय अपमान होगा। इस प्रकार के विचार बनवीर के अंतःकरण में सिंहासन पर बैठने के बाद बराबर उठने लगे। असलियत यह थी कि बनवीर चित्तौड़ के राज्य पर सदा के लिये अपना अधिकार चाहता था। वह समझता था कि यदि विक्रमाजीत के लिए मैं सिंहासन से न भी उतारा गया तो संग्रामसिंह का छह वर्ष का बेटा कुछ वर्षों के बाद समर्थ हो जायेगा और उस दशा में वह स्वयं अपने पिता के इस सिंहासन पर बैठेगा। उस समय इस पर मेरा कोई अधिकार नहीं रहेगा। इस प्रकार की भावनाओं से बनवीर निरंतर चिन्तित रहने लगा। उसके जीवन में विक्रमाजीत और उदयसिंह, दोनों ही काँटे थे। उसने इन कांटों को निर्मूल करने का निश्चय किया और समय की प्रतीक्षा करने लगा। एक दिन सायंकाल उदयसिंह भोजन करके सो गया था। उसका पालन करने वाली पन्ना धाय उसके पास बैठी थी। कुछ समय के बाद महलों में काम करने वाला बारी घबराया हुआ वहाँ आया। उसने पन्ना धाय से कहा-"बनवीर ने विक्रमाजीत को मार डाला।" बारी के मुँह से इस बात को सुनकर वह काँप उठी। उसने समझ लिया कि बनवीर का यह आक्रमण सीसोदिया वंश के लिए अच्छा नहीं है। बनवीर का यह आक्रमण यहीं खत्म न होगा। वह संग्रामसिंह के इस छोटे बालक उदयसिंह को भी निश्चित रूप से अपना शत्रु समझता है । विक्रमाजीत पर होने वाला आक्रमण उदयसिंह के सर्वनाश का संदेश है। पन्ना धाय खीची वंश के राजपूत परिवार में पैदा हुई थी और जीवन भर उसने चित्तौड़ के महलों में रहकर सीसेदिया वंश की सेवा की थी। वह सदा से इस राजवंश की शुभचिंतक रही थी। उसने किसी भी दशा में छह वर्ष के बालक उदयसिंह के प्राणों को बचाने की चेष्टा की। फलों और तरकारियों के रखने का एक बड़ा झाबा उसे मिल गया। 166