राजस्थान का इतिहास भूगोल सम्बन्धी परिचय भारतवर्ष में राजपूत राजाओं के रहने वाले प्रदेश का नाम राजस्थान है। इसको रजवाड़ा, रायथाना और राजपूताना भी कहा जाता है। शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमण के पहले राजस्थान का विस्तार कितना था, यह नहीं कहा जा सकता। हो सकता है कि उस समय उसका विस्तार गंगा, यमुना को पार कर हिमालय के करीब तक पहुँच गया हो। इस समय हमारे सामने उतना ही राजस्थान है, जिसके अन्तर्गत अनेक जातियों के लोग रहते हैं और जिसे राजस्थान अथवा राजपूताना कहा जाता है। इसके पश्चिम में सिन्धु नदी का कछार, पूर्व में बुन्देलखण्ड, उत्तर में सतलज नदी के दक्षिण का मरुस्थल भाग, जो जंगल देश कहलाता है और दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत है। इसका क्षेत्रफल तीन लाख पचास हजार वर्गमील है । इस इतिहास में उसके राज्यों के वर्णन का जो क्रम रखा गया है, वह इस प्रकार है- (1) मेवाड़ अथवा उदयपुर, (2) मारवाड़ अथवा जोधपुर, (३) बीकानेर और कृष्णगढ़, (4) कोटा, (5) बूंदी, (6) आम्बेर अथवा जयपुर, उसके स्वतन्त्र और परतन्त्र भाग, (7) जैसलमेर, (8) हिन्दुस्तान का मरुस्थल भाग, जो सिन्धु नदी के कछार तक चला गया है। सन् 1806 ईसवी में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तरफ से जो राजदूत सिंधिया-दरबार में भेजा गया था, उसके साथ मेरी नियुक्ति गयी थी। उसी समय से इस इतिहास की सामग्री जुटाने का काम मैंने आरम्भ कर दिया था। उस समय के पहले बने हुए राजस्थान के नक्शे सही न थे। मैंने उसे सही तौर पर तैयार करने का काम किया और सन् 1815 ईसवी में यहाँ का भूगोल नक्शों के रूप में तैयार करके मारक्विस आफ हेस्टिग्स को मैंने भेंट किया, वह बहुत काम का सावित हुआ। सिंधिया की सेना उन दिनों मेवाड़ में थी। इस स्थान से ही नहीं, बल्कि राजस्थान की वास्तविक स्थिति से योरोप के लोग पूर्ण रूप से अपरिचित थे। उस समय तक यहाँ के जो नक्शे बने थे। उनमें यहाँ का कोई भी प्रसिद्ध स्थान तक नक्शों में सही स्थानों पर न था, यहाँ तक कि मेवाड़ के उदयपुर और चित्तौड़ की दोनों राजधानियाँ भी नक्शों में गलत स्थानों पर दिखायी गई थीं और वह गलती इस प्रकार थी कि चित्तौड़ उदयपुर के पूर्व और ईशान के मध्य में होने के बजाय, अग्निकोण में दिखाया गया था। इसका साफ अर्थ है कि राजस्थान के भूगोल का ज्ञान नक्शा बनाने वालों को बिल्कुल न था। जो नक्शे उस समय तक बने थे, उनमें अन्य वातों का कोई वर्णन नहीं था। जो नक्शे सन् 1806 ईसवी तक के बने हुए थे, उनमें राजस्थान के बहुत से पश्चिमी और मध्य के राज्यों का पता न था। उस समय तक लोग यह समझते थे कि राजस्थान की समस्त नदियाँ दक्षिण की ओर वढ़ती हुई नर्मदा में जाकर मिलती हैं। इस प्रकार की भूल को संशोधन करने का कार्य भारतवर्ष के भूगोल तैयार करने वाले मिस्टर रेमल ने किया था। उसके बाद उसमें जो यह 17
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