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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१७५

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चित्तौड़ के पतन के चार वर्ष बाद गोगुण्दा नामक स्थान पर बयालीस वर्ष की अवस्था में उदयसिंह की मृत्यु हो गयी। राणा उदयसिंह के पच्चीस लड़के थे और सभी जीवित थे। वे सभी राणावत के नाम से प्रसिद्ध हुए और उन लोगों ने अपने वंश की अनेक शाखाओं, उपशाखाओं की प्रतिष्ठा की। मरने के पहले राणा उदयसिंह ने अपने छोटे पुत्र जगमाल को अपने राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया था। उसका ऐसा करना राजस्थान की पुरानी नीति के अनुसार अन्यायपूर्ण था। उसके बेटों में इसी. अन्याय के कारण झगड़े की शुरुआत हुई। राणा उदयसिंह ने सोनगरे सरदार की लड़की के साथ विवाह किया था। उस राजकुमारी से प्रतापसिंह का जन्म हुआ। प्रताप के मामा जालौर सरदार मेवाड़ के सिंहासन पर प्रताप को बिठाना चाहते थे। राणा उदयसिंह के निर्णय के अनुसार चित्तौड़ के सिंहासन पर जब जगमाल बैठा तो जालौर ने मेवाड़ राज्य के विख्यात चूडावत कृष्णजी से बातचीत की। कृष्ण जी ने जालौर सरदरार के विचार का समर्थन किया और आवश्यकता पड़ने पर प्रताप के अधिकारों का समर्थन करने के लिए वचन दिया। एक दिन जगमाल अपने प्रासाद के भोजनालय में उस आसन पर बैठा था, जिस पर प्रताप सिंह को बैठना चाहिये था। उसी समय ग्वालियर राज्य के भूतपूर्व नरेश को अच्छा न मालूम हुआ। इसलिए जगमाल को बैठे हुए आसन से खींचकर रावत कृष्ण ने कहा “महाराज, आप भूल कर रहे हैं। इस आसन पर बैठने का अधिकार केवल प्रतापसिंह को है।" जगमाल ने कुछ उत्तर न दिया। इसी समय सलुम्वर नरेश ने प्रतापसिंह को लाकर चित्तौड़ के सिंहासन पर बिठाया और तीन बार पृथ्वी को स्पर्श करके उसने मेवाड़ राज्य के राणा प्रताप के नाम का सम्बोधन किया। उपस्थित सरदारों और सामन्तों ने उसी समय रावत कृष्ण का समर्थन किया। संक्षेप में अभिषेक के इस कार्य के समाप्त होने पर राणा प्रताप ने उपस्थित सरदारों और सामन्तों से कहाः “अहेरिया का उत्सव आ गया है। इसलिए हम सब लोग तैयार होकर शिकार के लिए चलें और इस उत्सव के कार्य को सम्पन्न करें।" सभी लोगों ने राणा प्रताप की बात को स्वीकार किया।