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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१७६

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अध्याय-20 महान महाराणा प्रताप राणा प्रताप को मेवाड़ राज्य का अधिकार प्राप्त हुआ। परन्तु उस अधिकार में नाम के सम्मान के सिवा और कुछ न था। न तो राजधानी थी, न राज्य के वैभव थे और न सेना एवम् सरदार उसके साथ थे। तीन बार के आक्रमणों से चित्तौड़ का सर्वनाश हो चुका था। जो कुछ बाकी था, दिल्ली के मुगल बादशाह अकबर ने आक्रमण करके चित्तौड़ की शक्तियों का विध्वंस कर डाला था। इस प्रकार के विनाश के पश्चात् राणा प्रताप को मेवाड़ राज्य का अधिकार प्राप्त हुआ था। राज्य की इन दुर्बल परिस्थितियों में भी राणा प्रताप का हृदय निर्बल न पड़ा। उसमें स्वाभिमान था, राजपूती गौरव था और साहस तथा पुरुषार्थ था। राज्य का अधिकार प्राप्त करने के बाद वह चित्तौड़ के उद्धार का उपाय सोचने लगा। किसी प्रकार वह अपने पूर्वजों के गौरव की प्रतिष्ठा करना चाहता था। लेकिन इसके लिए उसके अधिकार में कोई साधन न थे। बादशाह अकबर अत्यन्त दूरदर्शी और राजनीतिज्ञ था। चित्तौड़ को पराजित करने के बाद और राज्य से उदयसिंह के चले जाने के पश्चात् भी वह चुपचाप न बैठा। उसने राजस्थान के एक-एक राज्य और नरेश को अपनी अधीनता में लाने का कार्य आरम्भ कर दिया था और उसके इस प्रयत्न के फलस्वरूप मारवाड़, आमेर, बीकानेर और बूंदी के राजा उसके प्रलोभन में आ गये। इन राज्यों ने न केवल मुगल सम्राट के सामने अपना मस्तक नीचा किया था, बल्कि जो राजपूत नरेश अकबर की अधीनता को मानने के लिए तैयार न थे, उनके साथ ये लोग लड़ने के लिए तैयार थे। इन सब बातों का कारण अकबर की राजनीतिक चाल थी। अपने अभावों के साथ-साथ राणा प्रताप के सामने इतनी ही कठिनाई न थी, बल्कि इससे भी अधिक दुर्भाग्य की बात यह थी कि राणा प्रताप का सगा भाई सागर भी शत्रुओं के साथ मिल गया और अकबर बादशाह ने उसको अपनी तरफ से चित्तौड़ का अधिकारी बना दिया। राणा प्रताप के जीवन में इस समय ये सभी परिस्थितियाँ भयानक हो गयी थीं। राणा प्रताप ने इन विरोधी परिस्थितियों की परवाह न की और वह चित्तौड़ के उद्धार का उपाय लगातार सोचता रहा। उसने धीरे-धीरे अपनी शक्तियों का संगठन आरम्भ किया। सबसे पहले उसने अपने जीवन की विलासिता का अंत कर दिया। सोने-चाँदी के बर्तन में भोजन करने का तरीका उसने मिटा दिया और उन बर्तन के स्थान पर भोजन करने में वृक्षों के पत्तों का प्रयोग आरम्भ कर दिया। सोने के समय कोमल शैया के स्थान पर 176