पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१९२

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दिया और मेवाड़ के जन-जन को अपने साथ जोड़ने में सफलता पाई। संभवतया राजस्थान में अकेले प्रताप ही ऐसे राजपूत थे जिन्होंने अकवर के सभी शत्रुओं को इकट्ठा कर अपने हित के लिए लाभ उठाने का प्रयास किया। क्षात्र-धर्म, हिन्दु स्वाभिमान एवं राजपूतों की आन जैसे भावनात्मक विन्दुओं पर राजपूतों, भीलों, किसानों तथा सामान्य जन का समर्थन पाने में वे सफल रहे। राणा प्रताप का संघर्प संकीर्ण संप्रदाय की रक्षा का संघर्प नहीं था, नहीं तो सैकड़ों पठान और उनके नेता हाकिम खाँ सूर तथा अन्य मुसलमान राणा के झंडे के नीचे लड़ाई नहीं करते । प्रताप के पक्ष में जोधपुर, डूंगरपुर, बूंदी, सिरोही एवं ईडर आदि राज्यों के कई विद्रोही सामंत सहयोगी बनकर खड़े हुये। यह उनके व्यक्तित्व और नीतियों की सफलता थी। 1572 ई. के समय जब प्रताप को मेवाड़ का मुकुट पहनाया गया था तव से ही अकवर की साम्राज्यवादी दृष्टि में प्रताप आ गये थे। यह प्रताप की कूटनीतिक सफलता थी कि 4-5 वर्षों के लंवे समय तक वे मुगल दबाव से बचे रहे। मानसिंह को अकवर ने दूत बना कर भेजा, यह कहानी सर्वविदित है। इतना ही नहीं अकबर ने तीन-चार वार और अपने दूतों को महाराणा के पास भेजा। लेकिन स्वाभिमानी प्रताप दूत-दलों एवं उनके साथ आये सेनापतियों एवं मुगल फौजों से नहीं डरे। अपितु उन्होंने निम्न चार कदम उठाए:- 1. मुग़ल प्रस्तावों का विरोध न करते हुए महाराणा ने बातचीत के लिए सिद्धता दिखाई। 2. संधि प्रस्तावों को लंबी बातचीतों के द्वारा परोक्ष रूप से टालते हुए चतुराई से युद्व की तैयारी के लिए समय निकाला एवं आदर सम्मान यथोचित रूप में देकर शक करने का अवसर नहीं दिया। 3. यहां तक कि कुँवर अमरसिंह को मुग़ल दरवार में भेजने के लिए भी तैयार हो गए। 4. मानसिंह और भगवंत दास सेना लेकर मेवाड़ में घुस आये उनका भी वुरा राणा ने नहीं माना व उलझने से बचते रहे। उपरोक्त सभी प्रयत्न महाराणा एक उद्देश्य से करते रहे, जिसके आधार पर आने वाले घोर संघर्ष के वर्षों में मेवाड़ सैनिक और आर्थिक दृष्टि से मजबूत होकर खड़ा रहा व मुग़लों की साम्राज्यवादी भूख का शिकार नहीं वना। प्रताप की कूटनीति का एक और उदाहरण हमारे सामने आता है, जब वह संधि के किसी भी मुग़ल प्रस्ताव को ना नहीं करते हुये आत्मविश्वास और चतुराई के साथ अपनी तैयारी में लगे रहे। दूसरी ओर प्रताप मुग़ल विरोधी तत्वों से मित्रता बना कर अपने साथ मिलाने का प्रयत्न करते रहे। सिरोही के राव सुरताण का उदाहरण प्रताप की दूरदर्शिता प्रकट करता है क्योंकि उसके काम राजपूत जाति की मर्यादा के विपरीत थे फिर भी उसे अपना सहयोगी बनाने में वे सफल रहे। यहां तक कि अपने कुल में उसकी कन्या के विवाह की वार भी चलाने में नहीं हिचके। 192