1. रक्षात्मक युद्धनीति व सबसे अधिक महत्व की बात 'अभिनव छापामार युद्व प्रणाली' पर बहुत ही कम लिखा गया है। इस परिशिष्ठ में महाराणा प्रताप के जीवन के इस सर्वथा अनछुए पक्ष पर कुछ लिखने का प्रयास किया गया है। महाराणा प्रताप की दूरदर्शिता:- अकबर जैसे शक्तिशाली शत्रु से प्रताप जिस प्रकार बिना झुके एवं बिना टूटे जीवन भर संघर्ष करते एवं लोहा लेते रहे, यह बड़े महत्व की बात है। इस सफलता के पीछे उनकी प्रशासनिक सूझबूझ, दीर्घकालीन संघर्ष हेतु अग्रिम योजना तथा मेवाड़ की अर्थव्यवस्था को नियोजित करना आदि गुण हैं। प्रताप 1572 ई. से . 1576 ई. के बीच चार वर्षों तक अपने श्रेष्ठ कूटनीतिक प्रयासों से संघर्ष को टालने में सफल रहे तथा इस समय का उपयोग मेवाड़ की अर्थव्यवस्था व अन्य व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने में किया। प्रताप के उद्देश्य:- जिस समय प्रताप का राज्याभिषेक हुआ, मेवाड़ चहुं ओर से संकटों से घिरा था। पूरा राजस्थान मुगल दासता स्वीकार कर चुका था। इधर मेवाड़ की भूमि, धन एवं जन सभी कम होते जा रहे थे तो उधर जगमाल जैसे स्वजन अकबर से जाकर मिल गए थे। मुगलों की 'फूट डालो राज करो' की नीति ने शेष कसर पूरी कर दी। राजपूतों की एकता समाप्त प्रायः थी। ऐसे में अब प्रताप के सामने तीन लक्ष्य रह गये थे- अकबर जैसी शक्ति से लम्बी लड़ाई के लिए पर्याप्त तैयारी करना। 2. स्वाभिमान, स्वतंत्रता एवं कुल गौरव की रक्षा करना। अब और अधिक विध्वंस से मेवाड़ के जन, धन व सैनिक शक्ति को बचाना। प्रताप के सामने अकबर जैसा एक शक्तिशाली शत्रु था, जिसके पास असीम साधन थे। उसकी तुलना में छोटे से मेवाड़ राज्य के साधन नाममात्र के थे। महाराणा ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए फिर भी बड़ी सूझबूझ से योजना बनाई व प्रयास किये। लेखक की दृष्टि में आया है कि कई इतिहासकारों ने प्रताप को जिद्दी,समय के अनुसार न बदलने वाला, हठी एवं कमजोर मेवाड़ को मुसीबतों में फँसाने वाला शासक कहा है। किन्तु वास्तविकता इससे एकदम भिन्न है। उनके स्थान पर यदि मेवाड़ का शासक कोई और होता तो मेवाड़ की आन- बान की रक्षा करना और आने वाले सर्वनाश से मेवाड़ को बचा कर ले जाना बहुत ही कठिन कार्य होता। किन्तु हम यहां प्रताप को मझधार में से मातृभूमि की नाव को खे कर सफलता पूर्वक ले जाने वाला कुशल नाविक पाते हैं। शायद ईश्वर को यही स्वीकार था अन्यथा महाराणा के असफल होने पर मेवाड़ का नामोनिशान मिट जाता। अकबर के अटक प्रवास के समय, जहां वह उजबेगों से संघर्ष में फँस कर लंबे समय तक अपनी राजधानी से दूर रहा था, महाराणा ने पुनर्विजय कर तथा मृत्यु से पहले चित्तौड़ को छोड़कर शेष सभी किले जीतने में सफलता प्राप्त की। लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न :- यह राणा प्रताप की दूरदर्शिता थी कि मुगल साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को उन्होंने मातृभूमि की गुलामी के विरुद्ध संघर्ष के रूप में बदल 191 3.
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