पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१९४

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राजस्थान में शायद प्रताप ही एकमात्र राजपूत योद्धा हुए जिन्होंने इस विद्या का उपयोग किया। छापामार युद्ध को सफल बनाने के लिए निम्न बातें जरूरी थीं, जिनको प्रताप ने अंजाम दिया- (i) मेवाड़ के पर्वतीय प्रदेश का सर्वेक्षण, क्षेत्र का तार्किक विभाजन तथा प्रसिद्ध मार्गों, दरों एवं वाटों का अध्ययन कर उनकी नाकेबंदी करना। (ii) मुख्य विन्दुओं पर छोटे-बड़े किलों का निर्माण । (iii) पानी, भोजन व अन्य रसद सामग्री को प्राप्त करने की व्यवस्था एवं उनका भण्डारण करना। (iv) सूचना तंत्र की व्यवस्था करना, जिससे शत्रु आगमन, उसकी चौकियों का निर्माण एवं उसके आक्रमणों आदि का पूर्वानुमान किया जा सके। इसके लिए योग्य गुप्तचरों की नियुक्ति करना। (v) रक्षा रेखा (लाइन ऑफ डिफेन्स) दोहरी या तिहरी वनाना जिससं शत प्रतिशत सुरक्षा व शत्रु का नुकसान संभव हो। (vi) महाराणा ने अपने प्रशासन और सैन्य संचालन को इस प्रकार वाँट दिया कि शत्रु के आक्रमण के समय कार्य चलता रहे व भगदड़ न मचे। छापामार युद्ध तथा रक्षात्मक युद्ध की सफलता ही महाराणा की सफलता थी। जिसके कारण मुग़लों को मेवाड़ के जन और धन को बहुत बड़ी हानि पहुँचाने से रोके रखा। यह इस छापामार युद्ध की ही उपलब्धि थी कि मुगल सेनापति कुंभलगढ़, छप्पन के क्षेत्र तथा देसूरी आदि पर असफल आक्रमण करते और राणा उस समय मालवा या गुजरात में विजयी अभियान करते होते । राणा ने अपनी राजधानी चावन्ट को बनाया। यह भी उनकी रणनीति का उज्जवल प्रमाण है क्योंकि वह चारों ओर पर्वतमालाओं से घिरा क्षेत्र है। कोई भी शत्रु विना हानि उठाये इसमें प्रवेश नहीं कर सकता। प्रताप के युग की धार्मिक स्थिति:-प्रताप के चरित्र पर और उनकी मान्यताओं पर जिद्दी और हठी प्रताप अथवा वीर दूरदर्शी एवं मातृभूमि के रक्षक प्रताप, दोनों ही दृष्टि से विचार करने के बाद । चाहे डॉ. गोपीनाथ शर्मा के विचार हों जिसमें प्रताप का राष्ट्रीय एकता के कार्य से अलग रहना एक भूल थी, कहा गया है, अथवा श्री राजेन्द्र शंकर भट्ट द्वारा प्रताप को अपने आदर्शों पर सर्वस्व वलिदान करने वाला महापुरुप कहा गया हो। हमें वास्तविक निर्णय लेने से पहले तत्कालीन धार्मिक और सामाजिक स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। भारतीय इतिहास का मध्यकाल भीपण धार्मिक कट्टरता व धर्मान्धता का युग था। अकवर जैसे उदार शासक ने भी अपना जीवन युद्धवन्दी हेमू का स्वयं वध करके व "गाज़ी" की उपाधि धारण करके प्रारम्भ किया था। ऐसे में यदि राणा प्रताप को जनता ने "हिन्दुवां सूर्य' कहा हो तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। मुसलमानों के भारत में प्रवेश के साथ ही धार्मिक प्रचार प्रसार का 194