पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१९५

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वोलवाला रहा एवं इसके पीछे साम्राज्य विस्तार व नवीन प्रदेशों की विजय के उद्देश्य रहते थे। इससे पूर्व भारत में धार्मिक कट्टरता के उदाहरण विरले ही मिलते हैं। भारत उदारता, सहिष्णुता और भाईचारे का प्रतीक रहा है। 16 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में धार्मिक कट्टरता के वीच अकवर एक उदार वादशाह की एवं धार्मिक समानता की नीति का प्रतीक बनकर उभरता है। इस सहिष्णुता के विकास का ज्ञान सिसोदिया वंश के योग्य उत्तराधिकारी प्रताप को भी होना स्वाभाविक था। दिल्ली और आगरा में जिस तरह शिया मुसलमान और अन्य गैर मुस्लिम लोग ढूंढ-ढूंढ़ कर मारे जा रहे थे, उस समय प्रताप जैसे एक धार्मिक समभाव रखने वाले योद्धा के बारे में हिन्दू संकीर्णता' का लेवल लगा देना उचित नहीं होगा। संपूर्ण राजस्थान में मुसलमानों को अपने धर्म पालन की पूर्ण स्वतंत्रता थी। प्रताप के चरित्र को वताने वाली यह घटना जिसमें अब्दुल रहीम खानखाना की स्त्रियों एवं बच्चों की पूरी हिफाजत किया जाना और सम्मान के साथ लौटाना एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस संबंध में अंत में यह कहनां पर्याप्त होगा कि महाराणा अथवा उसके साथियों का इतिहास में ऐसा कोई भी काम नहीं मिलता जिसे धर्मान्धता, कट्टरता अथवा धार्मिक घृणा का उदाहरण कहा जा सके। महाराणा की आलोचना करने वाले इतिहासकारों को अकवर द्वारा 1568 ईसवी में चित्तौड़ में किये गये नरसंहार को नहीं भूलना चाहिए, जो केवल हिन्दू होने के कारण मार दिये गये थे। अतः धार्मिक संकीर्णता संबंधी कोई भी इल्ज़ाम महाराणा प्रताप पर नहीं लगाया जा सकता। प्रताप का संघर्प मूल रूप न मुगल सम्राट के विरुद्ध था अथवा न ये इस्लाम के खिलाफ था। वास्तव में यह संघर्ष विदेशी दासता एवं साम्राज्यवादी शिंकजे के विरुद्ध था। जहाँ तक अकवर के साम्राज्य विस्तार के प्रयासों को प्रथम राष्ट्रीय एकता स्थापित करने की कोशिश वताने का सवाल है भारतीय इतिहास में तो राष्ट्रीय और सामाजिक एकता के प्रयास तीसरी सदी ई.पू. में ही अशोक के द्वारा किये हुए मिलते हैं। दूसरी ओर अकवर को राष्ट्रीय एकता के लिए काम करने वाला शासक होने का श्रेय कैसे दिया जा सकता है जबकि वह दक्षिण भारत में अपनी नीतियों के साथ प्रवेश भी नहीं कर सका था। अतः इतिहास के लेखक व पाठक दोनों के लिए यह आवश्यक है कि प्रताप का स्थान इतिहास में निर्धारित करने से पहले वे तत्कालीन परिस्थितियों को समझें। घटनाओं एवं तथ्यों पर विचार करें व उनको समग्र दृष्टिकोण से देखा जाए। दो व्यक्तियों के नाते अकवर और प्रताप की तुलना हो सकती है परन्तु अकवर के साम्राज्यवाद उसके वंश एवं उसकी मुगल संस्कृति के परिपेक्ष में उसका मूल्यांकन करना ठीक होगा। दूसरी ओर प्रताप के आदर्श, मेवाड़ की परिस्थिति एवं महाराणा पर स्वाभिमान रक्षा की जिम्मेदारी को ध्यान में रखकर हमें प्रताप का मूल्यांकन करना होगा। अंत में हम कहेंगे कि डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने ठीक ही मत व्यक्त किया है कि प्रताप भारत की तात्विक भावना के प्रतीक थे। यह भावना सदैव राष्ट्र की स्वतंत्रता और गौरव की रक्षा के संघर्ष में आगे रही है। 195