- किनारे बहुत-सी जातियों के लोग रहा करते हैं। सिंधिया, चन्द्रावत, सिसोदिया, हाड़ा, गौड़, जादू, सीकरवाल, गूजर, जाट, तोमर, चौहान, भदौरिया, कछवाहा, सेंगर और बुन्देला आदि अनेक जातियों के निवास स्थान चम्बल और कुँवारी नदियों के बीच में हैं। लूनी नदी के मार्ग की लम्बाई उसके आरम्भ से लेकर अन्त तक 300 मील से अधिक है। दक्षिण की तरफ लूनी नदी के उत्तर तरफ से और पूर्व की ओर शेखावाटी की सीमा से रेतीले भाग की शुरुआत होती है। बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर आदि सभी रेतीली जमीन पर हैं। जैसलमेर मरुस्थल से घिरा हुआ है। यहाँ का दुर्ग एक पहाड़ी पर कई सौ फीट की ऊंचाई पर बना है। कहा जाता है कि यहाँ पर किसी समय हाड़ा नाम के किसी राजा का अधिकार था। लेकिन उसका अब कोई अस्तित्व वहाँ पर नहीं है। राजस्थान के जो प्रदेश इस मरुस्थली भूमि पर हैं, उनको मरुभूमि के नाम से ही लोग अधिक मानते हैं। वास्तव में यह नाम उसी भाग के लिये अधिक उपयोगी मालूम होता है जो राठौड़ राजाओं के अधिकार में है। लूनी नदी के बालोतरा स्थान से लेकर उसके समस्त घाट और उमरसुमरा तथा जैसलमेर के पश्चिमी हिस्से बिल्कुल सूनसान तथा उजाड़ हैं। लेकिन सतलज नदी से लेकर पाँच सौ मील की लम्बाई और लगभग पचास मील की चौड़ाई तक की सारी भूमि अनेक प्रकार की चीजों के लिये उपयोगी है। वहाँ पर सिन्धु नदी के कछार और उसकी सूखी जमीन पर रहने वाले गड़रिये अपनी भेड़ें चराया करते हैं। इन स्थानों पर जल के बहुत से झरने हैं। उनके आसपास राजड़, सोढ़ा, माँगलिया और सहराई लोग प्रायः दिखायी देते हैं। यहाँ पर विस्तार के भय से झीलों, सज्जी क्षेत्रों एवं मरुस्थल की अन्यान्य पैदावारों का वर्णन नहीं किया गया है और न वनस्पति तथा खनिज पदार्थों का ही वर्णन करने की आवश्यकता है। जैसलमेर के निकट एक पहाड़ी है जिसमें पीली पत्थर अधिक पाये जाते हैं और जिसके खूबसूरत पत्थर इस देश से अरव देश तक की अच्छी इमारतों में लगाये गये हैं। 20
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