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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२१०

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विरुद्ध सफल संघर्ष के कारण भारतवर्ष की प्रधान तात्विक भावना, का प्रतीक माना गया है, जो सर्वथा उचित है। यह भावना देश के परम्परागत गौरव की रक्षा करती है और इस गौरव पर आंच लाने वाली हर बात के विरुद्ध संघर्ष करती है।" किन्तु इतना लिखने के पश्चात् डॉ. श्रीवास्तव यह भी कहते हैं कि प्रताप में अकबर के समान रचनात्मक योग्यता, दष्टि की व्यापकता और राजनैतिक अन्तर्दृष्टि का अभाव था। महाराणा प्रताप के सम्बन्ध में प्रकट किये गये विभिन्न इतिहासकारों के मत पर विचार करने तथा प्रताप के आदर्श और सिद्धान्तों के संबंध में चर्चा करने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम तत्कालीन परिस्थितियों तथा प्रचलित धारणाओं एवं सामाजिक वातावरण पर गौर करें जो उस समय व्याप्त थे। विशेष बात यह है कि भारत में धार्मिक कट्टरता और अत्याचार का काल इस्लाम के प्रवेश से प्रारम्भ होता है, जो भारत में प्रविष्ट होने के समय तक अपने क्रांतिकारी स्वरूप को छोड़कर विकृतिपूर्ण बन चुका था। इस्लाम के आगमन के पूर्व और बाद में भी मूल भारतीय सांस्कृतिक परंपरा उदारता, सहिष्णुता और समन्वय की रही। 2. अकबर तथा इस्लाम में कट्टरता इन परिस्थितियों में निस्सन्देह ही मुगल साम्राज्य के निर्माता अकवर को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने अपनी दूरदर्शिता, राजनैतिक सूझबूझ और साहस से नवीन नीतियों का सूत्रपात किया जो भारतीय भावना और परम्परा के अनुरूप थी। यह भी हकीकत है कि उस (13 वीं से 16 वीं ई.शती के मध्य) काल में भारत जिस धार्मिक और सामाजिक क्रांति की हलचल से गुजर रहा था अकवर की धार्मिक नीतियों के निर्माण पर भारी असर पड़ा और उसके कारण कट्टरपंथियों के विरुद्ध संघर्ष में उसका अकबर को बड़ा बल मिला। अकबर के उदारतापूर्ण दृष्टिकोण और व्यवहार से धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं समन्वय की प्रवृतियों को वड़ा बल दिया। अकवर की इस नीति ने साम्राज्यी सत्ता को वह उदारवादी स्वरूप प्रदान किया, जो उसके पूर्व की सल्तनतों को प्राप्त नहीं हुआ था, जिनकी सत्ता भारत पर विदेशी जुए के समान ही रही। भारत में अकबर ने अपने सम्राज्य का प्रारम्भ स्वयं युद्धवन्दी हेमू का वध करके और "गाजी” की उपाधि धारण करके शुरू किया । जानी मुबारक अपने उदारतावादी विचारों के कारण अत्याचार का शिकार हुआ। मीर हब्शी, खिज्र खाँ, मिर्जा मुकीम और याकूब जैसे उदारतावादी अथवा शिया धर्म को मानने वाले लोग मार डाले गये । वदायुनी लिखता है कि न केवल गैरमुसलमानों बल्कि सभी विरोधी मतावलंबियों को भी ढूंढ कर मार डालने का रिवाज था। अब्दुलनबी ने काजी की शिकायत पर एक ब्राह्मण का इस्लाम की निन्दा करने के दोष के कारण वध कर दिया। लाहोर के गवर्नर हुसेन खाँ ने, जो 1576 ई. में मरा, हिन्दुओं के लिये अपनी बाहों पर विभिन्न रंगों के पेबेन्द लगाने, घोड़ों पर सवारी नहीं करने देने जैसे अपमानजनक नियम लागू कर रखे थे। अबुलफजल और बदायुनी आदि समकालीन लेखक इस बात के साक्षी हैं कि 1593 ई. तक कई हिन्दू बलात् मुसलमान बनाये गये थे। 1572-73 ई. में जब कांगड़ा विजय किया गया तो नगरकोट के मन्दिर की देवी का छत्र तीरों से छेद दिया गया, 200 गायों का वध किया गया और उनका रक्त मन्दिर की दीवारों पर छिड़का गया। 3. प्रताप की धार्मिक उदारता मेवाड़ के राणा इस बात में विश्वास रखते थे कि मेवाड़ राज्य के असली शासक एकलिंग महादेव हैं । राणा उनके दीवान हैं और उनके लिये राज्य करते हैं । मेवाड़ राज्य के इस सैद्धान्तिक धार्मिक स्वरूप का राज्य की व्यावहारिक धर्म-समभाव नीति पर कोई संकीर्ण प्रभाव नहीं पड़ा। यही कारण था कि प्रताप को हकीम खां सूर का सहयोग और जालोर के ताजखां की मित्रता 210