पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२२१

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कट्टरता का सामना भी करना पड़ा। फिर भी उसके कारण मेवाड़ के शासकों में धार्मिक आधार पर प्रतिशोध अथवा असहिष्णुता की प्रवृत्ति उत्पन्न नहीं हुई। इस राजनीति के अन्तर्गत कभी सीमावर्ती हिन्दू राजाओं से तो कभी मुसलमान वादशाहों से युद्ध हुए। आवश्यकता पड़ने पर एक मुसलमान वादशाह के विरुद्ध युद्ध हेतु दूसरे मुसलमान बादशाह से मैत्री-संधि भी की। 1519 ई. में गागरोन के युद्ध में राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद को कैद किया तो राणा ने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया । 1562 ई. में महाराणा उदयसिंह ने अकबर के आक्रमण भय से भाग कर आये मालवा के सुल्तान बाजवहादुर को चित्तौड़ में शरण प्रदान की। राणा ने गुजरात से भाग कर आए शहजादे बहादुर शाह को शरण दी। अन्त में यही कहना उचित होगा कि धार्मिक सहिष्णुता एवं उदारता की नीति का अनुसरण करना मुगल बादशाह अकबर के लिये अपने साम्राज्य के स्थायित्व एव विस्तार के लिये एक राजनैतिक आवश्यकता थी, किन्तु राणा प्रताप के लिये ऐसा करना अपने वंश की उज्जवल धरोहर को कायम रखना और आदर्श नीतियों का पालन करना था। इस तुलना में प्रताप का पलड़ा भारी रहता है। ऊपर दी गई घटनाएं साक्षी हैं। --