पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२३९

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दरवार में भेज सकता हूँ । मेरा बेटा दरवार में रहेगा, बुढापे के सवव से मैं खुद वहाँ नहीं रह सकता। इसके लिए मैं माफी चाहता हूँ।" "मेरी हुकूमत के जमाने में चित्तौड़ मातहत हुआ, इसके लिए मुझे वड़ी खुशी है और हुक्म दिया कि मेवाड़ के पुराने मुश्तहक महरूम नहीं रहेंगे। इस बात का मुझको कामिल यकीन है कि राणा अमरसिंह और उसके बुजुर्गों को अपनी ताकत का पूरा इतकाद था। उनको पहाड़ी लोगों की ताकत का पूरा यकीन था, वे अपनी कौम के नाम पर मगरूर थे, वे हिन्दुस्तान के दूसरे राजाओं को राजा नहीं समझते थे, उन्होंने कभी किसी के सामने सिर नहीं झुकाया था। ऐसी हालत में इस अच्छे मौके को हाथ से जाने देना मैंने मुनासिब नहीं समझा । इसलिए फौरन अपने लड़के को इख्तियारात देकर भेजा और राणा को माफी दी। साथ ही एक फरमान भेज कर राणा को लिख दिया कि आप मेरे साथ बिना किसी फिक्र के रहेंगे। उस फरमान पर मैंने अपना पंजा भी लगा दिया। मैंने अपने लड़के को ताकीद कर दी कि उस मुअज्जिज राणा की मंशा और ख्वाहिश के मुआफिक सब बातें काम में लाई जावें।" "मेरे लड़के ने यह फरमान और एक चिट्ठी सूपकर्ण और हरिदास के जरिये से वहाँ भेजी और इन दोनों सरदारों के साथ शुक्रउल्ला व सुन्दरदास को भी रवाना किया। उसने राणा को कहला भेजा कि बादशाह के इस दस्तखती परवाने को कबूल करें। बाद इसके कुछ तारीख को राणा साहब का शाहजादे के पास आना करार पाया।" "शिकार खेलने के लिए जब मैं अजमेर गया, उस वक्त शहजादे खुर्रम का मुहम्मद बेग नामी नौकर मेरे पास आया। उसने खुर्रम की दस्तखती एक चिट्ठी देकर मुझसे कहा कि राणा ने शाहजादा साहब से मुलाकात की थी।" "इस खबर को सुनते ही मैंने मुहम्मद बेग को एक हाथी, एक घोड़ा और एक तलवार इनाम में दी और उसको जुलफिकार-खाँ की पदवी दी।" "सुल्तान खुर्रम के साथ राणा अमरसिंह और राजकुमार कर्ण की मुलाकात और बेगम नूरजहाँ का कर्ण को इज्जत के साथ ओहदा देने का बयान ।” “राणा अमरसिंह ने तारीख 26 इकशम्बा के रोज बादशाहत के दूसरे मातहत राजाओं की तरह इज्जत और लियाकत के साथ शाहजादा से मुलाकात की। मुलाकात के वक्त राणा- साहब ने शाहजादा खुर्रम को एक बेशकीमती पद्मराग, बहुत-से हथियार, वड़ी कीमत के हाथी और नौ घोड़े खिराज में दिये। शाहजादा ने उसको हलीमियत और इज्जत से कबूल किया। राणा ने शाहजादे के घुटनों को पकड़ कर माफी चाही। खुर्रम ने भी अच्छी तरह से उनको समझा-बुझाकर दिलासा दिया और एक हाथी, कई घोड़े और एक तलवार व खिलअत भी उनको दी। राणा साहब के साथ में जो राजपूत थे; उनके लिये भी एक सौ बीस खिलत, पचास घोड़े और रत्नों से जड़े हुए वारह सरपेंच (कलंगी) भेजे गये। अगरचे इन लोगों में सौ आदमियों से ज्यादा इनाम पाने के लायक नहीं थे तो भी यह सब सामान उनमें बाँट दिया गया। इन राजा लोगों में एक रिवाज चला आता है कि बाप-बेटे दोनों एक साथ हम लोगों की मुलाकात को नहीं आते। राणा ने भी इस रिवाज के मुताविक काम किया। वे अपने लड़के को साथ नहीं लाये । उस दिन सुलतान खुर्रम ने अमरसिंह को रुखसत कर दिया। उस वक्त उसने वलीअहद कर्ण के भेज देने का अहद पैमान हो लिया। वक्त पर कर्ण आया। हाथी, तलवार और दूसरे हथियारों के सिवा तरह-तरह के खिलत उसको दिये गये। उस दिन ही शाहजादे के साथ वह मुझसे मुलाकात करने के लिए आया।" 239