पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२४०

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- "सुलतान खुर्रम ने मुझसे मुलाकात करके कहा कि अगर हुजूर हुक्म दें तो राजकुमार कर्ण आप की कदमबोसी हासिल करे । मैंने उसको लाने का हुक्म दिया। वह आजजी और अदव के साथ आया । बादजाँ सुलतान खुर्रम की सिफारिश से मैंने उसको अपनी दाहिनी तरफ बिठा लिया और एक उमदा खिलत दी। राजकुमार इसलिए शरमाया कि वह सख्त पहाड़ी मुल्कों में रहने के सवव दरवार के कायदों से महज नावाकिफ और ऐश आरामों के सामानों से बिलकुल महरूम था। दरवार शाही के दवदवे को उसने कभी नहीं देखा था। वह बहुत कम बोलता और हम लोगों के साथ वुहुत कम मिलना चाहता था। राजकुमार कर्ण के दिल में अपना यकीन कराने के लिए मैं रोज-रोज उसको अपनी कोशिश और अपनी मुहब्बत का एक नमूना दिखाता था। उसके मुकर्रर होने से एक दिन वाद मैंने उसको जवाहरात से जड़ी हुई एक छुरी और तीसरे दिन एक ईराकी घोड़ा दिया। इसी दिन मैं उसको बेगम नूरजहाँ के पास ले गया। नूरजहाँ ने भी राजकुमार को सजा-सजाया हाथी, घोड़ा, तलवार और बहुत से जवाहरात इनाम में दिये।" "इस ही दिन मैंने भी उसको मोतियों का एक हार और दूसरे दिन हाथी बतौर इनाम में दिया। मेरी जियादा ख्वाहिश थी कि शहजादे को नफीस और उम्दा-उम्दा सामान दिया जावे। जिस वक्त मुझको कोई खूबसूरत और उम्दा तोहफा मिलता, मैं फौरन राजकुमार को दे देता। एक बार मैंने उसको तीन वाज और तीन तुरा जानवर दिये । वह जानवर यहाँ तक पोस मान गये थे कि हाथ बढ़ाते ही हाथ पर आकर बैठ जाते थे। एक सजोवा और दो कीमती अंगूठियाँ भी उसको दी गयीं और इसी महीने की पिछली तारीख को मैंने गलीचे, खूबसूरत जरी के काम की आराम कुर्सियाँ, अतर की शीशियाँ, तिलाई वरतन और दो गुजराती वैल दिये।" "दसवाँ साल । इस वक्त कर्ण को उसकी जागीर में जाने के लिए छुट्टी दी । रुखसत के वक्त एक हाथी, एक घोड़ा और एक मोतियों का हार जिसकी कीमत पचास हजार रुपये थी, दिया । उस बार कर्ण जितने दिन तक मेरे गेरवार में रहा, उतने अरसे में उसको जितना सामान मेरे यहाँ से मिला, उसकी कीमत दस लाख से ज्यादा होगी, उसमें उस इनाम और सामान की कीमत नहीं लगाई गयी है जो शाहजादे खुर्रम ने राजकुमार को दिया था। मैंने मुबारक खाँ को कर्ण के साथ रवाना किया और उसकी मारफत राणा साहव को एक हाथी व घोड़े वगैरह और कुछ पोशीदा खबरें भी भेजी।" "हिजरी सन् 1024 सफर महीने की आठवीं तारीख को शाहजादे कर्ण के लिए पाँच हजारी मनसबदारी दी गयी। इस वक्त मैंने उसको एक कंठा भी इनाम में दिया था जिसमें पन्ने लगे हुए थे।" “वाद इसके मुहर्रम की 24 तारीख को (सन् 1615 ईसवी) कुमार कर्ण का लड़का जगतसिंह जिसकी उम्र वारह वर्ष की थी, दरवार में आया। उसने अदव के साथ आदाव वजा लाकर अपने वालिद.और दादा की अर्जी पेश की। उसके आली खानदान में पैदा होने का सबूत साफ-साफ उसके चेहरे से जाहिर हो रहा था। उसके साथ बर्ताव मेहरबानी से किया गया, मैं तरह-तरह की बख्शीशें देकर उसको खुश करने लगा।" "सावन के दसवें दिन जगतसिंह मेरी इजाजत लेकर अपने मुल्क को गये । वक्त रुखसत तक मैंने उसको बीस हजार रुपये, एक घोड़ा, हाथी और तरह-तरह के खिलत दिये। राजकुमार कर्ण के उस्ताद हरिदास झाला को पाँच हजार रुपये, एक घोड़ा और खिलत तथा उसी की मारफत राणा के पास सोने की छः मूर्तिया भेजीं।" 240