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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२४

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डाले गये । इसका नतीजा यह हुआ कि उन ग्रंथों की मूल सामग्री विलीन हो गयी और उनके रहस्यमय भाष्य लोगों के सामने आ गये। आज की परिस्थिति यह है कि उनमें सुधार और परिवर्तन के नाम पर कोई खोज का काम नहीं कर सकता। अगर कोई ऐसा करने का साहस करे भी तो वह अधर्मी और विरोधी समझा जायेगा। संसार की अन्य जातियों की तरह हिन्दुओं ने भी धीरे-धीरे अपनी उन्नति की होगी। उस समय संसार की जो जातियाँ उत्थान के मार्ग में आगे बढ़ रही थीं, उनके साथ हिन्दुओं ने मिलकर कुछ न कुछ अवश्य ही एक दूसरे से लिया होगा, यह स्वाभाविक है, लेकिन यदि किसी देश ने ऐसा नहीं किया तो यह मानी हुई बात है कि उसकी उन्नति स्थायी रूप से अधिक समय तक नहीं चल सकती। इस देश के आरंभ काल में धार्मिक नेतृत्व आजकल की तरह कुछ लोगों के लिये पैतृक नहीं था बल्कि उस पर सब का समान रूप से अधिकार था। यह बात मैं हिन्दुओं के ग्रंथों के आधार पर ही लिखने का साहस कर रहा हूँ। इक्ष्वाकु के दस लड़के थे। उनमें तीन धार्मिक हो गये थे और उन तीन में से एक ने अग्निहोत्र लेकर अग्नि की पूजा की थी। उसका एक पुत्र व्यवसायी हो गया था। चन्द्रवंशी राजपूत पूर्तवा के छः पुत्रों में चौथे का नाम रहा था। उसकी पन्द्रहवीं पीढ़ी में हारीत हुआ और वह अपने आठ भाइयों के साथ धार्मिक हो गया था। उसी ने कौशिक गोत्र की प्रतिष्ठा की थी, जो व्राह्मणों की एक शाखा है। राजा ययाति की चौवीसवीं पीढ़ी में भारद्वाज नाम का एक राजा हुआ। उसके नाम पर एक गोत्र की प्रतिष्ठा हुई और उस गोत्र वाले आज तक पुरोहित का काम करते हैं। राजा मनु के दो पुत्र धार्मिक वृत्ति के कारण ब्राह्मण हो गये और एक ब्राह्मण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज बहुत से काम ब्राह्मणों तक ही सीमित हैं। लेकिन पहले ऐसा न था। हिन्दुओं के ग्रंथों में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि अनेक सूर्यवंशी राजा शासन करते हुए भी ब्राह्मणों के काम करते थे। रामचन्द्र के पहले और बाद तक राज्य वंश में उत्पन्न होने वाले धर्मावलम्बी होकर धार्मिक वृत्ति के कार्य करते रहे । उनके सिर के बाल जोगियों की तरह के होते थे। उन्हीं ग्रंथों में इस बात के प्रमाण भी मिलते हैं कि राजपूत राजाओं की लड़कियों के विवाह राजर्षियों के साथ होते थे। शूरवीर पाँचालिक की लड़की अहिल्या का विवाह गौतम ऋषि के साथ हुआ था जो यदुकुल की एक शाखा है। हैहयवंश में उत्पन्न होने वाले राजा सहस्त्रार्जुन की लड़की जमदग्नि को व्याही गयी थी। परशुराम के पिता का नाम जमदग्नि था। शासन और धर्म का अधिकार क्षत्रियों और ब्राह्मणों को था। दोनों को शासन और धर्म में वरावर अधिकार थे। यही अवस्था प्राचीन काल में मिश्र और रोम की थी। रोम और मिश्र के लोग अपनी रुचि के अनुसार शासन और धर्माधिकार स्वीकार कर सकते थे। समाज का विधान इसका विरोधी न था। हेरोडोटस ने लिखा है कि मिश्र के शासन का अधिकार धर्म के आचार्यों और वीर पुरुषों को ही दिया जाता था। शासन का अधिकारी कोई तीसरा नहीं हो सकता था। भारत के शासन में ब्राह्मणों का स्थान कम नहीं रहा। जमदग्नि से लेकर महाराष्ट्र के पेशवा तक में इस बात के प्रमाण बराबर मिलते हैं कि ब्राह्मण इस देश में शासन करते रहे। शासकों पर ब्राह्मणों का आधिपत्य था। मिथिला का राजा जनक राजर्षि विश्वामित्र और वशिष्ठ से हाथ जोड़कर प्रार्थना किया करता था। बहुत से ब्राह्मणों ने भारत में राज्य किया। रावण ब्राह्मण था और लंका में राज्य करता था। उसने अयोध्या के राजा राम से युद्ध किया था। 24