पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२३

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अध्याय-2 राजपूतों की वंशावली- हिन्दू ग्रन्थों का आधार सूर्य और चन्द्रवंशी राजपूतों की वंशावली का वर्णन करने के लिये यहाँ पर हमने भागवत और अग्निपुराण से सामग्री लेने की चेष्टा की है। इन वंशावलियों का कुछ हिस्सा सर विलियम जोन्स, मिस्टर बेंटले और कर्नल विल्फर्ड के द्वारा एशियाटिक रिसर्चेज की पुस्तकों में प्रकाशित हो चुका है। फिर भी हिन्दुओं के ग्रंथों का अवलोकन करना हमारे लिये जरूरी है। हमें यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि भारत में इन वंशों की वंशावलियाँ गलत हैं। इसलिये कि उनकी गलतियों में भी उनके इतिहासों का सत्य है और हिन्दुओं के प्रसिद्ध ग्रंथ ही अपने इतिहास को बताने के अधिकारी हैं। यह बात सही है कि पुराणों में ऐतिहासिक वर्णन है। लेकिन उनके भाष्यकारों ने उनकी ऐतिहासिक सामग्री में जिस प्रकार की निकृष्ट मिलावट की है, उससे उनके ऐतिहासिक तत्वों का अनुसंधान करना बहुत कठिन हो गया है। हिन्दुओं ने बौद्धिक उन्नति की थी, इसका प्रमाण आज भी उनकी टूटी इमारतों और पौराणिक चित्रों से मिलता है। उन्नति के बाद पतन का समय आया और उस समय नयी रचनाओं के अभाव में पुरानी रचनाओं के केवल भाष्य किये गये। उस समय भाष्यकारों को नियंत्रण में रखने के लिये, ऐसा मालूम होता है कि सच्चे समालोचकों की यहाँ पर बहुत कमी थी। इस अभाव में भाष्यकारों ने मनमानी की और किसी प्रकार का भय न होने के कारण प्रत्येक ब्राह्मण भाष्यकार ने यह समझ लिया कि हम इन प्राचीन ग्रंथों में जितनी आश्चर्यजनक बातों की मिलावट करेंगे, उतनी ही हमारी प्रशंसा होगी। परिणाम यह हुआ कि उस भयानक मिश्रण में पुराणों की ऐतिहासिक सच्ची सामग्री विलीन हो गयी और जो पुराण ऐतिहासिक सामग्री के लिये आधार थे, वे असत्य और आश्चर्य में डाल देने वाली कहानियों के रूप में रह गये। यही अवस्था बैंबिलोनिया देश की हुई थी। ईसा से तीन शताब्दी पहले उसके इतिहास लेखक बेरोसन ने अपनी-अपनी कल्पनाओं के द्वारा उस देश के पुराने इतिहास को आश्चर्यमय बना दिया था। लेकिन उस देश की कोई बड़ी क्षति इसलिये नहीं हुई कि उस देश के पुराने इतिहास लेखकों के लेखों द्वारा इतिहास के सही तत्वों का छिप जाना संभव न हो सका । परन्तु भारतवर्ष की परिस्थिति इससे बिल्कुल भिन्न है। भाष्यकारों के पहले इस देश के पुराण कुछ और थे। यदि आरंभ से ही वे इसी प्रकार अस्पष्ट होते, जैसे कि वे आज हैं तब तो इस बात पर विश्वास करना ही कठिन हो जाता कि भारतवर्ष ने विद्या और बुद्धि में बहुत बड़ी उन्नति की थी। परन्तु ऐसा न था। पतन के आरंभ होते ही इस देश में नयी रचनायें नहीं लिखी गईं। बल्कि पुराने ग्रंथों को रहस्यपूर्ण बनाने के लिये भाष्य लिखे गये और उन भाष्यों के अगणित भाष्य तैयार कर 23