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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२४२

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उसके पूर्वजों के इन गुणों की उसने खूब प्रशंसा की और उनके इस क्षत्रियोचित कार्य को बधाई दी। उसने निष्पक्ष भाव से अमरसिंह और उसके पूर्वजों के उस श्रेष्ठ उद्देश्य को ‘स्वीकार किया, जिसके लिए उनको मुगलों के साथ इतने दिनों तक युद्ध करना पड़ा था। अधीनता स्वीकार करने के लिए पैगाम भेजने पर जहाँगीर ने अमरसिंह के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार किया, यह पैगाम उसने उसी समय भेजा, जब उसके सामने दो ही बातें रह गयी थी, वह या तो गिरफ्तार हो सकता था अथवा देश छोड़कर कहीं जा सकता था। अमरसिंह के सामने इन दो बातों को छोड़कर, तीसरी कोई बात न थी। ऐसे समय पर बादशाह जहाँगीर ने अनेक प्रशंसाओं के साथ राजपूतों के गौरव को स्वीकार किया। 'वह उसकी उदारता थी कि उसने अपने दरबार में अमरसिंह की उपस्थिति को क्षमा कर दिया। मुगलों ने राणा के प्रिय आलमगुमान हाथी को पकड़ कर बादशाह को भेंट किया था और जहाँगीर उस पर बैठ कर अपनी राजधानी में घूमने निकला था, विजय की खुशी में उसका ऐसा करना, सार्वजनिव उत्सवों की उपेक्षा कहीं श्रेष्ठ था। जहाँगीर ने अपने लड़के को राणा के पास भेजने के समय हिदायत दी थी कि वह राणा के साथ ठीक उसी प्रकार का व्यवहार करे, जैसा कि एक बादशाहू का दूसरे बादशाह के साथ होना चाहिए। उसका यह व्यवहार इस बात का ज्वलन्त प्रमाण है कि वह मनुष्य का सम्मान करना जानता था और उसकी यह लोकप्रियता किसी भी मनुष्य के हृदय पर प्रभाव डालती है। उसकी यह उदारता उसको अमिट सम्मान पाने का अधिकारी बनाती है। राजपूतों के राजा के प्रभुत्व को स्वीकार करना उसकी श्रेष्ठता का प्रमाण है, मेवाड़ के उत्तराधिकारी के जाने पर उसने उसको अन्य उपस्थित राजाओं से अधिक सम्मान देते हुए अपनी दाहिनी तरफ स्थान दिया। उसने कर्ण के संकोच और लज्जा-भाव का जो उल्लेख किया है, उससे मालूम होता है कि वह कर्ण की तरफ से सफाई दे रहा है। बालक जगतसिंह के दरबार में आने पर उसके व्यवहार में बादशाह ने एक सुन्दर शिष्टाचार को अनुभव किया और उसकी प्रशंसा की। राणा अमरसिंह ने अंत तक अपनी योग्यता और बहादुरी का प्रमाण दिया। वह प्रसिद्ध सीसोदिया वंश में पैदा हुए राणा प्रताप का लड़का था। पिता के बाद उसने बड़ी बुद्धिमानी के साथ सिंहासन पर बैठ कर अपने कर्तव्य का पालन किया। मेवाड़ राज्य में जितने भी राजा हुए, अमरसिंह उन सभी में योग्य और श्रेष्ठ था। 242