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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२४४

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- नदी के करीब का एक इलाका दे दिया था। टोडा उस इलाके की राजधानी थी। भीम ने अपने उस पाये हुए इलाके का निर्माण अपनी मर्जी के अनुसार किया और रहने के लिए वहाँ पर उसने एक प्रसिद्ध राजमहल बनवाया। उस राजमहल में बहुत समय तक उसके वंश के लोग रहते रहे और आज भी उस राज-प्रासाद के खण्डहर अपने नगर के प्राचीन गौरव का परिचय देते हैं । यद्यपि उस नगर की दशा अब अच्छी नहीं है। शाहजादा खुर्रम की प्रशंसा के कारण बादशाह जहाँगीर ने भीम को अपना एक इलाका देकर अपनी उदारता का परिचय दिया था और आशा की थी कि भीम भविष्य में उसके इस अनुग्रह में बँध कर रहेगा। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। वह जहाँगीर के किसी बन्धन में न था। लेकिन खुर्रम के साथ उसका बन्धुत्व और मित्रता का भाव पूर्ण रूप से कायम रहा। भीम शाहजादा खुर्रम से प्रेम करता था। परन्तु वह खुर्रम के बड़े भाई परवेज के साथ ईर्ष्या रखता था। उसका कारण था। परवेज मेवाड़ के राजपूतों से घृणा करता था और उस घृणा को सहन करने के लिए भीम किसी प्रकार तैयार न था । राणा अमरसिंह ने जब मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी, उसके पहले और खुर्रम के आक्रमण के पूर्व परवेज ने एक मुगल सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण किया था और उस समय मुगल सेना ने मेवाड़-राज्य का बुरी तरह विनाश किया था। भीम मेवाड़ का वह विनाश और विध्वंश भूला नहीं था। शाहजादा परवेज बादशाह जहांगीर का उत्तराधिकारी था और शाहजादा खुर्रम का बड़ा भाई था। जहाँगीर के बाद मुंगल सिंहासन का वही अधिकारी था। भीम की अभिलाषा कुछ और थी। वह परवेज के स्थान पर शाहजादा खुर्रम को मुगल सिंहासन पर बिठाने का समर्थक था। खुर्रम के साथ उसकी मित्रता थी ही। इस विषय में भी दोनों में परामर्श हुआ। भीम किसी भी प्रकार परवेज को दिल्ली के सिंहासन पर नहीं देखना चाहता था। इसलिए उसने अपनी सेना लेकर परवेज़ पर आक्रमण किया। दोनों की सेनाओं में युद्ध हुआ। अंत में मुगल सेना की पराजय हुई और परवेज मारा गया। बादशाह जहाँगीर को अभी तक भीम पर किसी प्रकार का सन्देह नहीं था। परवेज के साथ उसकी इस लड़ाई से जहाँगीर को उस पर अविश्वास हो गया। शाहजादा खुर्रम के साथ उसकी जो मित्रता थी, बादशाह जहाँगीर से वह छिपी न थी। अब उसे यह भी मालूम हो गया कि परवेज के साथ भीम की लड़ाई का कारण शाहजादा खुर्रम है। इस बात से जहाँगीर और खुर्रम के बीच कटुता पैदा हो गयी। भीम के द्वारा परवेज का मारा जाना जहाँगीर को सहन नहीं हुआ। इसलिए उसने भीम के साथ युद्ध करने का निर्णय किया और अपनी सेना लेकर वह रवाना हुआ। शाहजादा खुर्रम-जो सिंहासन पर बैठने के बाद शाहजाहाँ के नाम से प्रसिद्ध -जोधाबाई (जगत गोसाई) से उत्पन्न हुआ था और जोधाबाई राठौड़ राजपूतों के वंश उत्पन्न हुई थी। मारवाड़ के राठौड़ वंश का गजसिंह शाहजादा खुर्रम का नाना था। गुजसिंह परवेज के स्थान पर खुर्रम को दिल्ली के सिंहासन पर बिठाना चाहता था और छिपे तौर पर वह अपनी इसी कोशिश में लगा था। भीमसिंह से लड़ने के लिए मुगलों की जो सेना रवाना हुई, जयपुर का राजा उसका सेनापति था। मुगल सेना के आने का समाचार पाकर भीम ने उसके साथ युद्ध करने के लिए गजसिंह के पास सन्देश भेजा। मुगल सेना के साथ भीम ने युद्ध किया। मुगल सेना का मुकाबला करने के लिए उसके पास सेना काफी न थी। इसलिए उसकी पराजय हुई और वह स्वयं युद्ध में मारा 244