पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२४७

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भारतवर्ष में औरंगजेब के समकालीन अनेक हिन्दू राजा थे और सभी तेजस्वी एवम् साहसी थे। सम्पूर्ण राजस्थान अनेक राज्यों में बँटा हुआ था और प्रत्येक राज्य में पराक्रमी राजा का शासन था। आमेर का राजा जयसिंह, मारवाड़ का जसवंतसिंह, बूंदी और कोटा के राजा हाड़ा, बीकानेर का राठौड़, ओरछा और दतिया के राजा लोग-सभी शक्तिशाली एवम् योग्य थे ।औरंगजेब ने अयोग्यता से इन सभी राजाओं से ईर्ष्या पैदा कर ली थी। इसके फलस्वरूप कटुता बढ़ी और वह कटुता स्वयं उसके लिए भी अच्छी नहीं सावित हुई। औरंगजेब में एक प्रधान दोष यह था कि वह किसी का विश्वास नहीं करता था। जिनको वह अपना शुभचिंतक और मित्र समझता था, उनसे भी वह अपनी बातों को छिपाकर रखता था। इसका परिणाम यह हुआ कि उस पर अविश्वास करने वालों की संख्या बढ़ गयी और उसका अपना कोई नहीं रह गया। उसने हिन्दुओं के साथ निर्दयी व्यवहार किये थे, उनके लिए भयानक दण्ड की व्यवस्था की थी और तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन के लिए हिन्दुओं को मजबूर किया था। इन सब कारणों से हिन्दू प्रजा उसका राज्य छोड़कर भाग गयी। न्याय के अभाव में उसके राज्य में अराजकता बढ़ गयी थी। अधिक संख्या में हिन्दुओं के भाग जाने से राज्य के नगर, ग्राम और बाजार बहुत कुछ सूने हो गये थे। कृषकों के चले जाने से खेती के व्यवसाय को बहुत आघात पहुंचा था। सरकारी खजाने में धन का अभाव हो गया था। चारों तरफ अशान्ति बढ़ गयी थी। इसी अशान्ति और अराजकता ने शिवाजी को प्रोत्साहित किया और उसने मराठों का एक संगठन बनाकर औरंगजेब के शासन काल में मुगलों के साथ युद्ध किया । राणा प्रतापसिंह के बाद मेवाड़ राज्य की वीरता छिन्न-भिन्न हो गयी थी। राणा राजसिंह ने अपने शासनकाल में उसको फिर से सजीव बनाया । उसमें साहस, शौर्य और स्वाभिमान था । राणा का पद पाने के बाद उसने अपने पूर्वजों के गौरव में वृद्धि की । राज्य के सरदार और सामन्त उसका सम्मान करते थे और भविष्य के सम्बन्ध में राज्य के लिए बड़ी-बड़ी आशायें रखते थे। सरदारों और सामन्तों के साथ राणा राजसिंह का सम्मानपूर्ण व्यवहार था। के राजपूत मारवाड़ को छोड़ कर रूपनगर चले गये थे। यह नगर मुगलों के शासन में था। इसलिए जो राजपूत रूपनगर गये थे, उनको मुगलों की अधीनता में रहना पड़ा। औरंगजेब के सिंहासन पर बैठने के दिनों में रूपनगर के सामन्त की एक लड़की थी। प्रभावती उसका नाम था। उसने यौवनावस्था में प्रवेश किया था। वह अपने रूप सौन्दर्य के लिए उन दिनों में बहुत प्रसिद्ध हो रही थी। बादशाह औरंगजेब ने भी उसकी प्रशंसा सुनी थी। उसके मन में प्रभावती को प्राप्त करने की एक उत्कट अभिलाषा पैदा हुई । उसको अपने बादशाह होने का गर्व था। उसका विश्वास था कि प्रभावती मेरे साथ अपने विवाह को सौभाग्य समझेगी। औरंगजेब के हृदय में प्रभावती के प्रति लालसा बढ़ती गयी। अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए उसने दो हजार घुड़सवार सैनिकों की एक छोटी-सी सेना तैयार की और उसे उसने इस उद्देश्य से रूपनगर की तरफ रवाना कर दिया कि उसकी उस सेना का अधिकारी रूपनगर के सामन्त के पास जाकर कहे कि वह अपनी लड़की प्रभावती का विवाह मेरे साथ कर दे। औरंगजेब की यह सेना रूपनगर पहुँच गयी। उसके अधिकारी ने राठौढ़ सामन्त से बादशाह औरंगजेब का संदेश कहा। उसे सुनकर वह आश्चर्यचकित हो उठा। उसने उस समय बादशाह के इस प्रस्ताव का कोई उत्तर न दिया। उसकी लड़की प्रभावती ने भी सुना और जाना कि बादशाह औरंगजेब की एक सेना आयी है और उसने बादशाह के साथ मेरे विवाह का प्रस्ताव पिताजी के सामने रखा है। कुछ राठौर 247