सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रूपनगर प्रभावती ने राठौड़ राजवंश में जन्म लिया था। उसके अन्तरतम में राजपूत कन्या होने का स्वाभिमान था। बादशाह के प्रस्ताव को सुनकर उसके हृदय में आग लग गयी। वह अपने पिता की कमजोरियों को जानती थी और समझती थी कि शक्तिशाली मुगल सम्राट का विरोध करने के लिए मेरे पिता में न शक्ति है और न साहस है। इस दशा में उसकी चिन्तायें बढ़ने लगीं। इन्हीं दिनों में उसका ध्यान राणा राजसिंह की तरफ गया। उसके सामने और कोई रास्ता न था। वह समझती थी कि बादशाह से मेरी रक्षा करने में दूसरा कोई समर्थ नहीं हो सकता। इस प्रकार की बहुत-सी बातें सोच समझकर उसने अपने विश्वासी पुरोहित को राणा राजसिंह के पास भेजा। उसने वहाँ पहुँच कर प्रभावती का पुत्र राणा के हाथ में दिया। उस पत्र को पढ़ कर राजसिंह कुछ देर के लिए चुप हो गया और उसके बाद प्रभावती की सहायता करने का विचार उसके मन में पैदा हुआ। औरंगजेब की सेना रूपनगर में पहुँच चुकी थी और वह राठौड़ सामन्त का निर्णय सुनने के लिए वहाँ पर रुकी हुई थी। राणा राजसिंह राजपूतों की एक छोटी-सी सेना लेकर तरफ रवाना हुआ। रूपनगर अरावली पर्वत के नीचे एक भूमि पर बसा हुआ था। राजसिंह अपने राजपूतों के साथ वहाँ पहुँचा और उसने मुगल सैनिकों पर आक्रमण किया, दोनों तरफ से कुछ समय तक युद्ध हुआ। अंत में मुगल सैनिकों की हार हुई। उनमें से बहुत से मारे गये और जो बचे, वे रूपनगर से चले गये। राणा राजसिंह- रूपनगर से उनको भगाकर लौट आया। मेवाड़ के लोगों ने जब रूपनगर का यह समाचार सुना तो उनको बड़ी प्रसन्नता हुई और सभी लोगों ने अपने राणा की प्रशंसा की। बादशाह के सैनिकों के लौट जाने के पश्चात् कुछ ही दिनों में रूपनगर में अफवाह उड़ने लगी कि पन्द्रह दिनों के भीतर बादशाह की एक बड़ी फौज फिर आवेगी और वह जबरदस्ती प्रभावती को अपने साथ ले जायेगी । बादशाह उसके साथ विवाह करेगा। यह अफवाह प्रभावती के पिता ने सुनी । उसने प्रभावती से बातचीत की और उसने अपनी लड़की का विवाह राणा राजसिंह के साथ करने का निर्णय किया। प्रभावती ने पिता की इस बात को स्वीकार कर लिया। इसके बाद राठौर सामन्त की तरफ से एक आदमी इसी उद्देश्य के लिए उदयपुर भेजा गया। रूपनगर के आदमी ने उदयपुर पहुँचकर अपने सामन्त राजा का पत्र राणा को दिया। उसे पढ़कर राणा ने अपने दरबार के सामन्तों और सरदारों के साथ परामर्श किया। सभी ने राणा को राठौड़ सामन्त के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया । इस विषय में कुछ देर तक राणा ने उनके साथ बातचीत की। बादशाह औरंगजेब की शक्तिशाली सेना का और उसके विशाल साम्राज्य की शक्तियों का प्रश्न उठाकर राणा ने सरदारों और सामन्तों से विवाद किया। अंत में सबके परामर्श से राणा राजसिंह ने राठौड़ सामन्त के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। वह स्वीकृति राणा की तरफ से रूपनगर के राठौड़ सामन्त के पास भेज दी गयी। चूंडावत सरदार के साथ विचार विमर्श करके राणा राजसिंह ने प्रभावती के साथ विवाह की तैयारी की । वह उदयपुर के कुछ राजपूतों को लेकर रूपनगर की तरफ विवाह के लिए रवाना हुआ और चूंडावत सरदार उदयपुर की शक्तिशाली सेना लेकर चला। उसके साथ पन्द्रह सौ शूरवीर राजपूत घोड़ों पर थे। राणा राजसिंह सीधा रूपनगर की तरफ गया और चूंडावत सरदार पूर्व की तरफ रवाना हुआ। सरदार सैनिकों की मिलकर जो सेना रवाना हुई, उसके कुल सैनिकों की संख्या पचास हजार थी। 248