पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२६२

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उदयपुर बैठने जयमल मारा गया। मारवाड़ का शूरवीर दुर्गादास उदयपुर चला आया था। मारवाड़ के राजा से असंतुष्ट होने के कारण उसे ऐसा करना पड़ा था। राणा ने में उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया था और उसके जीवन-निर्वाह लिये पाँच सौ रुपये रोजाना के हिसाव से उसको दिये जाने की व्यवस्था कर दी थी। दुर्गादास जैसे शूरवीरों का कोई लाभ उद्यपुर को मिलने के पहले ही शाहआलम बहादुरशाह की मृत्यु हो गयी । राज्य के विरोधियों के द्वारा सन् 1712 ईसवी में बादशाह शाहआलम को विष देकर उसके प्राणों का अन्त किया गया। बादशाह शाहआलम चरित्रवान आदमी था। लेकिन उसको अपने पिता के अपराधों का फल भोगना पड़ा। औरंगजेब के अत्याचारों से मुगल साम्राज्य में बहुत अशान्ति पैदा हो गयी और चारों तरफ अधीनस्थ राजाओं ने स्वतन्त्र होने के लिए विद्रोह कर रखा था। वादशाह शाहआलम के मरने बाद मुगल राज्य की परिस्थिति एक साथ भयानक हो उठी। राज्य के उत्तराधिकारियों में झगड़े पैदा हो गये। इन्हीं दिनों में गंगा-यमुना के वीच के वेरा नगर से सैयद बन्धुओं ने आकर मुगल राज्य में अपना आधिपत्य जमाया और शासन व्यवस्था को व्यापार बना कर दोनों भाइयों ने मुगलों के राज्याधिकार के सा एक खेल आरम्भ कर दिया। जिसके द्वारा दोनों सैयद वन्धुओं का स्वार्थ-साधन होता, वह मुगल सिंहासन का अधिकारी हो जाता। इसका परिणाम यह हुआ कि राजसिंहासन पर लिए मुगलों में जो परिपाटी चली आ रही थी, उसका कोई महत्व न रहा। इस प्रकार मुगलों का सिंहासन और उस पर बैठने का अधिकारी हुसैन अली और अब्दुल्ला खाँ - दोनों सैयद बन्धुओं के निर्णय पर चलने लगे। मुगल शासन की यह अवस्था उस समय शुरू हुई जब उदयपुर में राजस्थान के तीन राजाओं ने मुगल बादशाह के विरुद्ध संधि की थी और वे तीनों जिन दिनों मुगल राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने के लिये तैयार थे। दोनों सैयद वन्धुओं ने फर्रुखसियर को मुगलों के राजसिंहासन पर विठाया और सम्पूर्ण राज्य में अपने आतंक का विस्तार कर दिया। इसके फलस्वरूप राजपूतों में जो अराजकता पैदा हो रही थी, उसकी आग प्रज्ज्वलित हो उठी। बहुत दिनों से मुगल शासकों के अत्याचारों को सहते हुए राजपूत जिस शांति और सन्तोष से काम ले रहे थे, वह अब कायम न रह सकी। इधर मुगल राज्य में सैयद बन्धुओं की जो मनमानी चल रही थी, उसने राजपूतों को खुलकर विद्रोह करने का निमंत्रण दिया। राजस्थान में स्थान-स्थान पर मन्दिरों को तोड़कर मस्जिदें वनवाई गयी थीं और उन मस्जिदों में मुगल लोग दीवानी और फौजदारी के मुकदमे निपटाते थे। मोहम्मद साहब के आदेशों का प्रचार होता था। राजस्थान की इन परिस्थितियों को सहन करने के लिए राजपूत लोग अव तैयार न थे। उन्होंने मुल्ला और काजी लोगों के विरुद्ध वातावरण उत्पन्न किया। उसका फल यह हुआ कि राजस्थान में मस्जिदों के अस्तित्व नष्ट होने लगे। इसके पहले मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं के समस्त अधिकारों को छीन कर मुसलमानों को दे दिया था। इन दिनों में राजपूतों ने और विशेष रूप से राठौरों ने उन अधिकारों को मुसलमानों के हाथों से छीन लिया। मारवाड़ के राजा अजीतसिंह ने इन दिनों में मुगलों को अपने यहाँ पूर्ण रूप से पराजित किया और उनको मारवाड़ से निकाल दिया। उदयपुर में जो संधि हुई थी; उसके s1. सैयद हुसैन अली अमीरुलउमरा के नाम से और उसका भाई अब्दुल्ला खाँ कुतबुल मुल्क के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वादशाह फर्रुखसियर ने गुप्त रूप से हुसैन अली के विरुद्ध अजितसिंह के पास जो पत्र भेजा था, उसकी जानकारी दोनों सैयद बन्धुओं को न थी। असलिए वे बादशाह की तरफ से अजितसिंह को दबाना चाहते थे। 262