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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२६४

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इसी परिच्छेद में पहले लिखा जा चुका है कि मुगल बादशाह के विरुद्ध जिन तीन राजाओं ने उदयपुर में संधि की थी, उसमें मारवाड़ का राजा अजितसिंह भी था। उस संधि में यह शर्त थी कि हममें से कोई मुगल बादशाह के साथ सामाजिक अथवा राजनीतिक - किसी प्रकार का सम्बन्ध न करेगा। संधि की उस शर्त को तोड़ कर अजितसिंह ने मुगल बादशाह फर्रुखसियर की अधीनता स्वीकार की और उसके साथ अपनी लड़की का विवाह किया। उसके इस कार्य ने राणा अमरसिंह से उसको फिर से अलग कर दिया। जिन दिनों राजस्थान के कितने ही राजा मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे, दिल्ली के करीब रहने वाले जाटों ने भी विद्रोह किया और वे लोग स्वतन्त्र हो गये। ये जाट लोग जिट वंश की एक शाखा में पैदा हुए थे और चम्बल नदी के पश्चिम की तरफ रहा करते थे। मुगल साम्राज्य की बढ़ती हुई कमजोरियों को देख कर जाटों ने संगठित रूप से मुगल बादशाह के विरुद्ध अपनी स्वाधीनता का झण्डा उठाया और अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा की। मुगलों की शक्तियाँ अपनी पराधीनता में जाटों को रख न सकी। मारवाड़ के राजा अजितसिंह ने जिन दिनों में मुगल बादशाह के साथ संधि की थी, उसके थोड़े ही दिनों के पश्चात राणा अमरसिंह की मृत्यु हो गयी। वह एक स्वाभिमानी और उन्नतिशील राजा था। जिन दिनों में चारों ओर से मुगल साम्राज्य पर आक्रमण हो रहे थे और उसकी अधीनता में पड़े हुये राजा अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिये चेष्टा कर रहे थे, राणा अमरसिंह बड़ी बुद्धिमानी के साथ मेवाड़ राज्य की उन्नति में लगा हुआ था। उसने अपने जीवन में कितने ही ऐसे कार्य किये थे, जिनके द्वारा वह सर्व प्रशंसा का अधिकारी हुआ । 264