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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२६६

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महलों में क्या को अपने दुर्ग का अधिकार दे दो। तुम्हार ऐसा करने से हम तुम्हारे साथ फिर कोई अत्याचार न करेंगे।" वादशाह को मजबूर होकर इस आज्ञा का पालन करना पड़ा। उसके हाथ से दुर्ग निकल गया और वहाँ पर वजीर और अजितसिंह को छोड़ कर अन्य कोई ठसका सहायक न रह गया। इनके बाद वाहर इस बात का पता किसी को न चला कि रहा है। अमीरुलटमरा अपनी दस हजार मराठा सेना के साथ बाहर इन्तजार कर रहा था। फर्मखसियर के स्थान पर रफीउशदरजात दिल्ली के सिंहासन पर बैठा । इस समय मुगल-राज्य की जो हालत चल रही थी, उससे घबरा कर नये वादशाह ने अजितसिंह और दृसरे राजाओं को खुश करने का विचार किया। इसके लिए उसने जजिया टैक्स जो हिन्दुओं पर लगाया था, हटा लिया । दृसरी तरफ सैयद बंधुओं ने राजपूतों को खुश करने की चेष्टा को और इनायत उल्ला को मन्त्री के पद से हटा कर राजा रत्लचन्द को मुगल-राज्य का मन्त्री बनाया। तीन महीने तक शासन करने के बाद रफीटशदरजात की मृत्यु हो गयी। उसके बाद दो अन्य बादशाह वहाँ सिंहासन पर बैठे और चन्द दिनों की वादशाहत का सुख ठठा कर संसार से चले गये। इसके वाट बहादुरशाह का वड़ा लड़का रोशन अख्तर मोहम्मद शाह के नाम से सन् 1720 ईसवी में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। उसने तीस वर्ष तक शासन किया। उसके समय में सम्पूर्ण साम्राज्य में भयानक विद्रोह खड़े हुये और मुगलों का राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। इन्हीं दिनों में मराठों और पहाड़ी अफगानों ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया और बहुत-से गाँव और नगरों को लूट कर भीषण उत्पात मचाया। इन दिनों में मुगल-राज्य की हालत खराब हो गयी थी । स्थान-स्थान पर उपद्रव हो रहे थे। सैयद बन्धुओं के अत्याचारों से राज्य का विध्वंस हो रहा था। इन दोनों वन्धुओं से जो लोग मित्रता रखते थे, उनमें निजामुल-मुल्क ठनसे अधिक अप्रसन्न हुआ। निजामुल-मुल्क एक चतुर सेनापति था। उसने बड़ी बुद्धिमानी के साथ मालवा-राज्य की उन्नति की थी। इसलिये सैयद बन्धुओं को ठससे शंका पैदा हो रही थी। निजामुल-मुल्क के अप्रसन्न होने के कारण सैयद बन्धुओं को भय अधिक हो गया। वे दोनों भाई जब से दिल्ली आये थे, मुगल शासकों को कठपुतली की तरह नचा रहे थे। उनकी भयानक राजनीति के कारण मुगलों का राज्य नष्ट होता जा रहा था। मुगल वंश में इस समय ऐसा कोई न था, जो इन भाइयों की राजनीति से मुगल-राज्य की रक्षा कर सकता। सैयद वन्धुओं ने अपनी राजनीति के द्वारा मुगल-सिंहासन का अधिकार अपने हाथ में ले रखा था। वे किसी ऐसे व्यक्ति को सिंहासन पर नहीं बैठने देना चाहते थे, जो राज्याधिकार पाने के बाद उन दोनों विरोध कर सके । इसलिए दोनों भाइयों के द्वारा अब तक मुगल सिंहासन पर ऐसे ही लोग वादशाह बना कर बिठाये गये, जो दोनों भाइयों के इशारों पर काम करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि एक अच्छे बादशाह के अभाव में मुगल-साम्राज्य की सारी शक्तियाँ नष्ट हो गयी और जो राजा उसकी अधीनता में थे, वे सभी विद्रोह करके स्वतन्त्र हो गये। शासन में अच्छा प्रवन्ध और न्याय न होने के कारण प्रजा वहुत दुःखी थी और अधिकारियों के प्रति अपनी सहानुभूति नष्ट कर चुकी थी। निजामुल-मुल्क ने भी अपनी आजादी की आवाज उठायी और असीरगढ़ तथा वुरहानपुर के किलों पर अधिकार कर लिया। निजाम की इस बढ़ती हुई ताकत को देखकर सैयद वन्धु घबरा उठे और अपनी सहायता के लिए उन्होंने राजपूत सामन्तों से प्रार्थना की। इस पर कोटा और नरवर के दोनों राजकुमार निजाम के विरुद्ध सेनायें लेकर रवाना हुए और नर्वदा नदी के किनारे पर पहुँच गये। उस लड़ाई में निजाम की विजय हुई और कोटा का राजकुमार मारा गया। 266