पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२६७

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- हैदराबाद राज्य जिस समय स्वतन्त्र हुआ, उसके साथ ही अयोध्या का राज्य भी आजाद हो गया। उस समय सैयद खाँ. वहाँ का नवाब था। पहले वह बयाना दुर्ग का सरदार था। सैयद भाइयों के विरुद्ध मोहम्मदशाह ने उसको दिल्ली से बुलाया था। वादशह की आज्ञा पाकर सहादत खाँ ने अमीरुल उमरा को मारने की चेष्टा की और हैदर खाँ ने उसका संहार किया। इस खबर को पाते ही कि अमीरुल उमरा मारा गया, मोहम्मदशाह ने उसके भाई अब्दुल्ला खाँ को कैद करने की कोशिश की। इस पर उसके वजीर ने बगावत की और दिल्ली के सिंहासन पर इब्राहीम को बिठाकर वह मोहम्मदशाह के विरुद्ध युद्ध करने के लिए रवाना हुआ। कुछ देर के संग्राम में दिल्ली के सेनापति शआदत खाँ ने वजीर को गिरफ्तार कर मोहम्मदशाह के सामने उपस्थित किया और बादशाह की आज्ञा से उसको फाँसी की सजा दी गयी। सेनापति शआदतखाँ की इस बहादुरी से मोहम्मद शाह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसको बहादुर जंग की पदवी दी और उसे अयोध्या का राजा बना दिया। इस सफलता के उपलक्ष में हिन्दू राजा बादशाह को बधाई देने के लिए गये। बादशाह ने आमेर और जोधपुर के राजाओं को अपने राज्य के कुछ इलाके इनाम में दिये । गिरधरदास ने मराठों को युद्ध करके पीछे हटाया था। इसलिए बादशाह ने उसको पुरस्कार में मालवा का राज्य दिया और निजाम को अपना वजीर बनाने के लिए हैदराबाद से बुलाया। गिरधरदास, रत्नचन्द्र के दीवान जुबीलराम नागर नामक ब्राह्मण का लड़का था। इसी सिलसिले में बादशाह ने जयसिंह को आगरा एवं अजितसिंह को गुजरात और अजमेर दिया। मुगल-साम्राज्य के इन विगड़े हुए दिनों में राजस्थान के सभी राजा और नरेश अपने राज्यों के निर्माण में लगे थे। परन्तु मेवाड़ राज्य में इस प्रकार का कोई भी कार्य न हो रहा था। इन दिनों में आमेर का राज्य जमुना नदी के किनारे तक फैल गया था और मेवाड़ के राजा अजयसिंह ने अजमेर के किले पर अपना झंडा फहरा कर और गुजरात के राज्य को तहस-नहस करके अपनी सेना राजस्थान की मरुभूमि तक पहुँचा दी थी। इस प्रकार उन दिनों में राजस्थान के सभी राजा अपनी उन्नति में लगे थे और अपने-अपने राज्यों की सीमा का विस्तार कर रहे थे। परन्तु मेवाड़ के राणा का इस तरफ़ बिल्कुल ध्यान न था। मेवाड़ के सीसोदिया वंश में पूर्वजों के सिद्धान्तों की सदा रक्षा हुई थी और आज भी हो रही थी। मेवाड़ के राणा के अनेक कार्य उसके सिद्धान्तवादी होने का प्रमाण देते हैं। यहाँ पर एक छोटा-सा उदाहरण लिख कर उसको स्पष्ट कर देना आवश्यक मालूम होता है। शक्तावत सरदार जैतसिंह ने राठौड़ो के हाथों से ईडर देश छीनकर कोलीवाड़ा के पहाड़ी भागों तक सम्पूर्ण भूमि को अपने अधिकार में कर लिया था और उसके बाद वह आगे बढ़ना चाहता था। यह समाचार राणा को मिला। उसी समय अपनी सेना के साथ लौटकर उदयपुर आने के लिये शक्तावत सरदार को राणा की ओर से आदेश भेजा गया। इस प्रकार का आदेश शक्तावत सरदार जैतसिंह को जैसे ही मिला, वह अपनी सेना के साथ उदयपुर आ गया। मेवाड़ के सामन्त राजाओं को इन दिनों में अपना दुर्ग बनाने के लिए अधिकार न था। इसलिए कि प्रत्येक सरदार राजा को राज्य की तरफ से जो इलाका मिलता था, वह तीन वर्ष के लिये होता था। इन दिनों में अरावली पर्वत के ऊंचे पहाड़ी स्थान मेवाड़-राज्य के लिये दुर्गों का काम करते थे और राज्य की सीमाओं पर जो दुर्ग बने हुए थे, शत्रुओं के आक्रमण करने पर उन्हीं दुर्गों का युद्ध के समय प्रयोग होता था। राज्य में इस प्रकार की व्यवस्था चल रही थी। 267