पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

का सम्वन्ध कायम न करेगा। इस प्रकार की शपथ लेने के वाद तीनों राजाओं ने - जिनमें राणा संग्रामसिंह का बड़ा लड़का जगतसिंह भी शामिल था - मेवाड़ के अन्तर्गत हुरड़ा नामक नगर में संधि-पत्र पर हस्ताक्षर किये। संधि के पश्चात् उन तीनों राजाओं ने मुगलों के साथ युद्ध करने का निश्चय किया और उसकी तैयारियाँ होने लगीं। बरसात के दिन समीप आ गये थे, इसलिये उनके बीतने की प्रतीक्षा होने लगी। बरसात के दिन पूरी तौर पर बीतने भी न पाये थे कि मुगल बादशाह के कमजोर पड़ने पर आमेर और मारवाड़ के दोनों राजाओं ने अपनी शक्तियों को मजबूत बनाकर उन्नति की थी और अब वे दोनों मेवाड़ राज्य से किसी बात में अपने आप को कमजोर नहीं समझते थे । मेवाड़ का राजा जगतसिंह पहले की परिस्थितियों के अनुसार अपना गौरव अधिक समझता था। इस प्रकार की धारणाओं के कारण उन तीनों राजाओं में कोई भी अपने को निर्बल और छोटा नहीं समझता था। उस संधि के शिथिल होने का यही कारण हुआ और समय को देखकर उस संधि के द्वारा जो संगठन किया गया था, छिन्न-भिन्न हो गया। निजामुल-मुल्क ने मुगलों की अधीनता से अपने राज्य को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र बना लिया था। ऐसी दशा में मुगलों का सेनापति मुवारिज खाँ एक मुगल फौज लेकर निजामुल-मुल्क से लड़ने के लिये रवाना हुआ। निजामुल-मुल्क बहुत चालाक आदमी था । उसने मुगल सेना में फूट पैदा करने की कोशिश की, परन्तु इसमें उसको कामयावी न मिली। इसलिए उसको मुगल-सेना के साथ युद्ध करना पड़ा। उस संग्राम में मुगल-सेना की पराजय हुई। निजामुल-मुल्क ने सेनापति मुवारिज खाँ का सिर काट कर बादशाह के पास भेजा और यह कहला भेजा कि बादशाह के साथ बगावत करने के कारण इसको पराजित करके और उसका सिर काट कर भेजा है। बादशाह मुहम्मदशाह ने अपनी कमजोरी में निजामुल मुल्क की इस बात को सुना और उसने उसको बर्दाश्त किया। निजामुल-मुल्क बड़ी बुद्धिमानी के साथ इन दिनों में अपने राज्य को में लगा हुआ था। उसे मुगल बादशाह से किसी प्रकार का डर न था। उसने अनेक प्रकार की बातें सोच कर राजपूतों साथ मित्रता बढ़ायी और मालवा तथा गुजरात राज्यों के सम्बन्ध में बाजीराव को उकसाया। बाजीराव अपनी सेना के साथ रवाना हुआ और उसने मालवा को घेर लिया। दयराम वहादुर उन दिनों में मालवा का अधिकारी था और वह मालवा के राजा गिरधारीसिंह का भतीजा था। बाजीराव के साथ युद्ध करते हुए वह मारा गया और मालवा मराठों के अधिकार में चला गया। ठीक यही अवस्था गुजरात की भी हुई। इसके पहले इस राज्य को राठौरों ने बादशाह से पाया था। परन्तु उनके द्वारा शर्तों के पूरा न होने पर अमरसिंह के लड़के अभयसिंह ने उस राज्य पर आक्रमण किया और उसके अधिकारी बुलन्द खाँ को निकाल दिया। इस अवसर का लाभ उठाकर राठौरों के जीते हुए गुर्जर राज्य पर मराठों ने अधिकार कर लिया। अभयसिंह ने इस तरफ अधिक ध्यान न दिया। अब उसके अधिकार में गुर्जर राज्य के केवल उत्तरी इलाके रह . मजबूत बनाने गये थे। जिन दिनों में भारत के दक्षिण में और राजस्थान में इस प्रकार के संघर्ष हो रहे थे, बंगाल, बिहार और उड़ीसा में शुजाउद्दौला अपने सहकारी अलीवर्दी खाँ के साथ शासन कर रहा था और अयोध्या का राज्य सआदत खाँ के लड़के सफदरगंज के अधिकार में था। यह राज्य सआदत खाँ को मुगल बादशाह की मर्जी से मिला था। परन्तु इसके बदले में उसने मुगल बादशाह के साथ विश्वासघात किया। 269