.. पाँच अप्रैल को बादशाह के दफ्तर से नादिरशाह की मोहर बाहर लायी गई और शान्ति की स्थापना के लिए उस मोहर को लगाकर राजाओं के पास पत्र भेजे गये । मेवाड़,मारवाड़, आमेर, नागौर, सितारा और दूसरे देशी राजाओं के साथ-साथ पेशवा बाजीराव के पास भी जो फरमान भेजे गये,उनमें लिखा गया : “हमारे प्यारे भाई मोहम्मदशाह के साथ हमारी सुलह और दोस्ती हो गयी है । अब हम दोनों एक-दूसरे के मददगार बन गये हैं। भाई मोहम्मदशाह को फिर से बादशाहत हासिल हुई है । अब दूसरे मुल्कों को जीतने के लिए हम इस मुल्क को छोड़ रहे हैं आप लोगों का फर्ज है कि आपके बुजुर्ग जिस तरह तैमूर खानदान के पिछले बादशाहों के साये में रहते थे और उनको इज्जत देते थे, आप लोग भी भाई मोहम्मदशाह के साथ उसी तरह का रिश्ता रखिये और उन पर यकीन करिये । उनको इज्जत दीजिये और उनके खैरख्वाह बनिये । खुदा न करे, अगर आप लोगों की बगावत की कोई खबर मेरे कानों में पहुंची तो मैं इस दुनिया से आप लोगों की हस्ती को मिटा दूंगा।" देश की इन दुर्घटनाओं में राजस्थान के राजाओं की कोई विशेष हानि नहीं हुई। इस्लामी राज्य के छ: सौ वर्ष इस देश में बीत चुके थे और उसके कितने ही तूफान राजपूतों के सामने आये थे। उन सबका मुकाबला करते हुए मेवाड़, मारवाड़ और आमेर की तरह के कई राज्य अब तक अपना अस्तित्व कायम किये हुये थे। मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के दिनो में मेवाड़-राज्य की जो सीमा थी, आज सात सौ वर्षों के बाद भी उस राज्य का वह विस्तार बना हुआ था। यद्यपि उस राज्य के कई हिस्से दूसरों के अधिकर में चले गये थे, परन्तु उस राज्य का प्राचीन और प्रमुख भाग अब भी सुरक्षित था और इन दिनों में भी मेवाड़ राज्य की लम्बाई एक सौ चालीस मील और चौड़ाई एक सौ तीस मील थी। राज्य के इस विस्तार में दस हजार से अधिक नगर और ग्राम थे । मराठों के हमलों और अत्याचारों का प्रभाव इस राज्य पर क्या पड़ा, एवम् लगभग अर्द्ध शताब्दी में किस प्रकार के परिवर्तन इस राज्य में हुए, उनको हम नीचे लिखने की चेष्टा करेंगे। सन् 1735 ईसवी में मोहम्मदशाह ने मराठों को चौथ देना मंजूर किया था, उसी समय से राजस्थान के राजाओं में मराठों का प्रभुत्व कायम हो गया था। राजस्थान के जो राजा मुगलों की अधीनता में थे, वे सभी मोहम्मदशाह के बाद मराठों को कर के रूप में निश्चित रकम देने लगे। मराठों ने इसके बाद राजस्थान लगातार अपना आधिपत्य बढ़ाया। उनके इस बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर राजपूत चिंतित हुए और वहाँ के राजाओं ने मिलकर फिर से एक नयी संधि की । राणा जगतसिंह इन दिनों में मेवाड़ के सिंहासन पर था। उसने मारवाड़ के उत्तराधिकारी राजकुमार विजयसिंह के साथ अपनी लड़की का विवाह कर दिया। इसके पहले से मारवाड़ और आमेर के राजाओं में जो वैमनस्य चला आ रहा था, उसको दूर करके दोनों में मेल करा दिया गया। इस प्रकार उदयपुर में बैठकर इन राजाओं ने अपनी एकता को मजबूत बनाने की चेष्टा की। उन दिनों में राजस्थान के राजाओं और राजकुमारों ने जो पत्र राणा जगतसिंह के पास भेजे थे, उनको पढ़ने से साफ मालूम होता है कि वे लोग भविष्य में आने वाली विपदाओं से परिचित हो चुके थे और उनके प्रतिकार के लिए ही उन लोगों ने पत्र लिखकर राणा जगतसिंह के प्रति अपना विश्वास प्रकट किया था ।1 जिन राजाओं में यह एकता कायम हुई थी, वह अधिक समय नहीं चल सकी और सामाजिक विवादों के कारण थोड़े ही दिनों में वह छिन्न-भिन्न हो गी। जिन राजाओं और राजकुमारों ने राणा जगतसिंह के पास पत्र भेजकर राणा के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट की थी उनके पत्रों को टाड साहब ने अपनी पुस्तक में ज्यों का त्यों दिया है। - अनुवादक 1. 273
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२७३
दिखावट