मालवा पर अधिकार करके मराठों ने चौथ लेना आरम्भ कर दिया। उसके बाद अपनी सेना के साथ बाजीराव मेवाड़ में पहुँचा। राणा ने उसके साथ युद्ध करने का विचार नहीं किया । वह स्वयं बाजीराव से मिलने भी नहीं गया। मेवाड़ के प्रधानमन्त्री बिहारीदास ने सलुम्बर सरदार को साथ लेकर बाजीराव से मुलाकात की। मेवाड़ की तरफ से मराठों के साथ संधि हुई और उसमें राा ने बाजीराव को चौथ देना मंजूर किया। इस चौथ में एक लाख साठ हजार रुपये वार्षिक राणा ने देना आरम्भ किया, जिसको होलकर, सिंधिया और पवार बराबर के हिस्सों में बाँट लेते थे। मेवाड़ की तरफ से चौथ की यह रकम दस वर्ष तक बराबरं मराठों को दी गयी। मेवाड़ के राणा ने अपनी लड़की का विवाह आमेर के राजा के लड़के के साथ किया था। उस समय आमेर के राजा ने वादा किया था कि इस लड़की से जो लड़का पैदा होगा, उसको बड़े पुत्र के अधिकार प्राप्त होंगे। कुछ समय के बाद उस लड़की से माधवसिंह नाम का बालक उत्पन्न हुआ। नादिरशाह के आक्रमण के दो वर्ष बाद सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गयी इसलिए उसका बड़ा लड़का ईश्वरीसिंह आमेर के सिंहासन पर बैठा। उस समय वहाँ के कुछ लोगों ने पहले किये गये वादे के अनुसार माधवसिंह को उत्तराधिकारी बनाने की चेष्टा की । परन्तु उस समय उन्हें कोई सफलता नहीं मिली और ईश्वरीसिंह को सिंहासन पर बैठे हुए पाँच वर्ष बीत गये। इन दिनों में दुर्रानियों के साथ युद्ध करने के लिए सवाई ईश्वरीसिंह अपनी सेना के साथ शतद्रु के किनारे पहुँचा।1 अपने भाँजे माधवसिंह के अधिकारों को दिलाने के लिए राणा ने ईश्वरीसिंह के साथ जाकर युद्ध किया। उसमें राणा की पराजय हुई। कोटा और बूंदी के हाड़ा लोगों ने राणा की सहायता की थी, इसलिए उनसे बदला लेने के लिए अप्पाजी सिंधिया की सहायता लेकर ईश्वरीसिंह ने उन पर आक्रमण किया। इस लड़ाई में सिंधिया का एक हाथ कट गया और उस युद्ध का कोई नतीजा न निकला। ईश्वरीसिंह के पराजित होने के बाद राणा जगतसिंह को बहुत ग्लानि महसूस हुई। उसने मल्हारराव होलकर के साथ निर्णय किया कि अगर वह ईश्वरीसिंह को सिंहासन से उतार देगा तो इसके बदले में मेवाड़ राज्य की तरफ से उसे चौंसठ लाख रुपये दिये जायेंगे। इस निर्णय के अनुसार मल्हारराव और राणा के बीच एक इकरारनामा हो गया। ईश्वरीसिंह ने जब यह समाचार सुना तो वह घबरा उठा और अपनी रक्षा का कोई उपाय न देखकर विष खाकर वह मर गया। उसके मरने के बाद माधवसिंह आमेर के सिंहासन पर बिठाया गया। राणा को अपने इकरारनामे के अनुसार चौंसठ लाख रुपये देने पड़े। इस सम्पत्ति से मराठों की शक्तियाँ बढ़ गयीं और राजपूतों का पतन उसी समय से आरम्भ हुआ। अठारह वर्ष तक राज्य करने के बाद सम्वत् 1808 सन् 1752 ईसवी में राणा जगतसिंह की मृत्यु हो गयी। 1. कन्धार को जीतने के समय नादिरशाह ने अहमद खाँ अब्दाली नाम के एक अफगान को कैद किया था। अब्दाली उसके वंश का गौत्र है। अहमदखाँ तेजस्वी और शूरवीर था। नादिरशाह ने कैद करने के बाद उसको छोड़ दिया और उसको एक इलाका दे दिया । नादिरशाह जब मारा गया तो अहमदखाँ ने उनके राज्य पर अधिकार कर लिया और सन् 1747 ईसवी के अक्टूबर में वह कन्धार का बादशाह बन गया। ईश्वरीसिंह उसी से लड़ने के लिए शतद्रु नदी के किनारे गया था। अहमदखाँ ने अपना गोत्र अब्दाली से बदलकर दुर्रानी कर लिया था। 274
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२७४
दिखावट