पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२७५

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अध्याय-25 महाराणा अरािसिंह तथा मराठों के अत्याचार राणा जगतसिंह की मृत्यु के बाद प्रतापसिंह दूसरा सन् 1752 ईसवी में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा । उदयपुर के राणा प्रतापसिंह की तरह यह न शूरवीर था और न प्रतापी था। यद्यपि दोनों का नाम एक ही था। इसके शासन काल में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ। उसने तीन वर्ष तक राज्य किया। इन दिनों में लगातार मराठों के उत्पात उसके राज्य होते रहे । उसका विवाह आमेर के राजा जयसिंह की लड़की के साथ हुआ था। उससे राजसिंह नाम का एक लड़का पैदा हुआ। यही राजसिंह उसके पश्चात् मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा। इस राजसिंह के पहले मेवाड़ के सिंहासन पर इसी नाम से एक राजा बैठ चुका था। परन्तु उसका-सा बल और प्रताप इस दूसरे राजसिंह में न था। इसने सात वर्ष तक राज्य किया। इसके शासन काल में सात बार मराठों के आक्रमण हुए। उनके कारण मेवाड़ का राज्य सभी प्रकार से निर्बल हो गया और आर्थिक अवस्था राज्य की इतनी खराब हो गयी कि राणा को स्वयं अपने एक ब्राह्मण मन्त्री से धन लेकर काम चलाना पड़ा। इस राणा का विवाह राठौर वंश की राजकुमारी के साथ हुआ था। राजसिंह के मरने के बाद अरिसिंह मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा और सम्वत् 1818 सन् 1762 ईसवी में उसने मेवाड़ राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली। राणा अरिसिंह भी वास्तव में मेवाड़-राज्य के लिए योग्य राजा न था। उसका स्वभाव और व्यवहार आरंभ से ही उसकी अयोग्यता का परिचय देने लगा था और उसकी निर्बलता के ही कारण राज्य में अनेक प्रकार के उत्पात पैदा हुए। उन उत्पातों के कारण राज्य की अवस्था भयानक रूप से बिगड़ गयी। इसके पहले मराठों के उपद्रव और आक्रमण हुए थे। लेकिन राज्य का पतन इसके शासन काल में जितना अधिक हुआ, उतना पहले कभी नहीं हुआ था। अरिसिंह के शासन काल में भीतरी और बाहरी आक्रमणों ने राज्य को बुरी तरह से निर्बल बनाया। प्रजा की शक्तियाँ सभी प्रकार से क्षत-विक्षत हो गयी। मेवाड़ राज्य की इस बढ़ती हुई कमजोरी को देखकर मराठों के विभिन्न दलों ने राज्य पर अपने हमले आरंभ किये। उन हमलों के दिनों में राज्य के सरदारों की एकता नष्ट हो गयी थी और राज्य की रक्षा के लिये आक्रमणकारी मराठों से सहायता मांगी गई। सरदारों के विद्रोह को दबाने की शक्ति राणा अरिसिंह में न रह गयी थी। इसलिए उसकी तरफ से मल्हारराव होलकर से सहायता माँगी गयी। इसके परिणाम स्वरूप मेवाड़ राज्य के बहुत से इलाकों पर मल्हारराव 275