पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वेतन पाते थे। इसके सिवा जो सरदार राज्य से अलग हो गये थे, इन वेतन पाने वाले आदमियों ने उन सरदारों के इलाकों पर अधिकार कर लिया था। राणा अरिसिंह ने अपनी अयोग्यता और निर्बलता के कारण उनके अनुचित अधिकारों को सहन किया था। लेकिन इसका प्रभाव राज्य की प्रजा पर अच्छा न पड़ा और उसके फलस्वरूप समस्त राज्य में असंतोष बढ़ता जा रहा था। इस असंतोष ने राज्य की निर्बलता को बढ़ाने का काम किया। असंतुष्ट सरदार राज्य की इस दुरवस्था को दूर से देख रहे थे। अमरचन्द बरवा के नेत्रों से राज्य का होने वाला यह पतन छिपा न था। अपने मन्त्री काल में उसने राज्य के हित के लिए बड़े प्रयत्न किये थे और अपने अथक परिश्रम से उसने राज्य के बहुत से अच्छे कामों का निर्माण किया था। वह मन्त्री पद से अलग कर दिया गया था । राणा अरिसिंह की तरफ से उसकी योग्यता का उसे यह पुरस्कार मिला था। अपमानित होकर उसने दस वर्ष से अधिक दिन व्यतीत किये। इन दिनों में मेवाड़ के पतन की पीड़ा उसको मिलने वाले अपमान से भी अधिक भयानक और असह्य हो रही थी। इन दिनों में राज्य का वह कोई अधिकारी न था। परन्तु वह राज्य की रक्षा के उपाय एकान्त में बैठकर सोचा करता था। मेवाड़ की इस बढ़ती हुई विपदा को देखते हुए उसने बहुत कुछ सोच डाला। उसने देखा कि उदयपुर के चारों तरफ रक्षा के लिए कोई खाई नहीं है । उदयपुर के दक्षिण की तरफ कुछ दूरी पर एकलिंगगढ़ नाम का एक ऊँचा पहाड़ था। उदयपुर का वह एक प्रमुख द्वार था। इसलिए उसको सुरक्षित बनाने के लिए राणा ने कुछ कार्य आरम्भ किया । उस स्थान की जमीन पहाड़ी होने के कारण ऊँची और अत्यन्त असुविधाजनक थी। इसलिए राणा अरिसिंह को अपनी योजना के अनुसार उसमें सफलता न मिल रही थी। राणा एक दिन उस पहाड़ी स्थान पर गया, जहाँ पर उदयपुर को सुरक्षित बनाने के लिए उसने कार्य आरम्भ किया था। अचानक अमरचंद से उसकी भेंट हुई। राणा उसकी योग्यता को जानता था। उसने अमरचंद से परामर्श किया और उससे पूछा कि इसको बनवाने में कितना रुपया खर्च होगा और कितना समय लगेगा? राणा अरिसिंह की इस बात को सुनकर अमरचंद ने सहज ही उत्तर दिया - “जो लोग कार्य करेंगे, उनके खाने पीने के लिये कुछ चाहिये और कुछ थोड़े दिनों का समय चाहिए।" राणा अमरचंद के उत्तर से वह बहुत प्रसन्न हुआ। जो कार्य उसके लिए भयानक था और जिसके लिए वह बहुत बड़ी सम्पत्ति की आवश्यकता समझता था, उसके लिए अमरचंद के मुख से इतना सीधा-सादा उत्तर सुनकर वह संतुष्ट हुआ और उसने उसी समय उसके निर्माण का कार्य अमरचंद बरवा को सौंप दिया। अमरचंद ने उसको स्वीकार करते हुये कहा कि इस कार्य सम्पादन में कोई भी संशय और मतभेद पैदा न करेगा। यदि यह अधिकार मुझे मिल सकता है तो इसके निर्माण के उत्तरदायित्व को मैं अपने ऊपर लेने को तैयार हूँ। राणा ने इस बात को स्वीकार कर लिया। अमरचंद ने उस कार्य को आरम्भ करवा दिया और उदयपुर से एकलिंगगढ़ तक एक रास्ता तैयार करवा दिया। इसके बाद थोड़े ही दिनों में इस कार्य को समाप्त करके अमरचंद ने उस पहाड़ के ऊपर से तोप छोड़कर राणा अरिसिंह का अभिवादन किया । माधवजी सिंधिया की सेना ने उत्तर-दक्षिण और पूर्व की तरफ से उदयपुर को घेर लिया। पश्चिम की तरफ उदयसागर का विस्तृत जल था और पहाड़ी घने वृक्षों से वह दिशा परिपूर्ण थी। इसीलिए उदयपुर के पश्चिम का रास्ता शत्रु सेना से खाली रहा। इसलिए उदयपुर के लोग इसी रास्ते से बाहर आते-जाते और नावों पर बैठकर उदयसागर को पार 279