पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२८२

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अमरचन्द ने राज्य की इस अवस्था को बदलने की तुरंत चेष्टा की। राज्य का जो खजाना अब तक बाकी था, उससे जितना भी अनाज मिल सका, खरीदा गया और राज्य के प्रत्येक वाजार में उसको भेजकर उसको अधिक से अधिक सस्ता विकवाने की कोशिश की गई । इस बात की चेष्टा की गयी कि कोई भी व्यापारी अनुचित लाभ उठाने की अभिलाषा न करे । सम्पूर्ण राज्य में ढोल पिटवा कर इस बात की मुनादी की गयी कि राज्य की रक्षा के लिए लड़ने वाले किसी भी आदमी को उसके प्रार्थना करने पर छ: महीने के खाने-पीने की सामग्री दी जायेगी, जिससे उसका परिवार सुख और संतोष के साथ रह सके। अमरचन्द की इन कोशिशों के फलस्वरूप राज्य की दुरावस्था में बड़ा परिवर्तन हुआ । मेवाड़ के जो शूरवीर राणा के विद्रोही हो रहे थे, उनमें से बहुत से राणा के दरवार में पहुँचे और उन सभी ने अपनी शुभकामनायें बड़ी नम्रता के साथ राणा और राज्य के प्रति प्रकट की। सरदार आदिल वेग ने कहा "हम सब लोग मेवाड़ में रहते हैं। हमने राज्य का नमक खाया है, सभी प्रकार की सुविधाओं का भोग किया है। हम सब का कर्तव्य है कि ऐसे समय पर जब शत्रुओं का राज्य पर आक्रमण होने वाला है, राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दें। इसलिए हम सब शपथपूर्वक इस बात को स्वीकार करते हैं कि भयानक से भयानक संकटों के समय में भी राणा का साथ नहीं छोड़ेंगे। मेवाड़-राज्य हमारी जन्मभूमि है । इस राज्य की रक्षा के लिए वलिदान होना ही हमारा धर्म है। हम लोगों को अव वेतन की आवश्यकता नहीं है। आज हमारे घरों में खाने-पीने की कमी नहीं है। यदि ऐसा समय आया जब उसका अभाव होगा तो हम लोग अपने हाथों में तलवारें लेकर शत्रुओं के साथ युद्ध करेंगे और अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए हँसते हुए अपने प्राणों को उत्सर्ग करेंगे। मेवाड़ राज्य के सरदार आदिल वेग की इस प्रकार की बातों का कारण अमरचन्द का प्रभाव था। दरवार में राणा मौजूद था। आदिलवेग की बातों को सुनकर उसके नेत्र खुल गये। इस समय राजपूतों और सिंधी लोगों का उत्साह असीम लहरें मार रहा था। मंत्री अमरचन्द ने राज्य की परिस्थितियाँ ही बदल दी और उसका परिणाम यह हुआ कि राज्य की निर्बल शक्तियाँ सजग और सवल हो उठीं। मेवाड़ दरवार का यह नव-जागरण सिंधिया से छिपा न रहा । उसके मन में अनेक प्रकार की शंकायें पैदा होने लगीं। इसी बीच में सिंधिया की सेना जो कुछ आगे बढ़ आयी थी, उसको पीछे हटाने के लिए राजपूतों ने आक्रमण किया। समय को देखकर सिंधिया ने संधि का फिर से प्रस्ताव किया। अमरचन्द इन दिनों मेवाड़ राज्य को पहले की तरह निर्वल नहीं समझता था। सिंधिया के द्वारा आने वाले प्रस्ताव का उत्तर देते हुए उसने कहला भेजा कि इधर छ: महीने तक सिंधिया के द्वारा जो अवरोध किया गया है, उसकी क्षति को काटकर संधि की जा सकती है। सिंधिया को अमरचन्द की यह बात स्वीकार करनी पड़ी और अंत में अमरचन्द द्वारा क्षति के पैसे काट कर तिरसठ लाख पचास हजार रुपये मंजूर करने पर सिंधिया को संधि करनी पड़ी। अमरचन्द ने राज्य के खजाने का सोना, रत्न और जवाहरात देकर संधि के रुपयों में तैंतीस लाख अदा कर दिये और वाकी रुपयों के लिए उसने जावद, जीरण, नीमच और मोरवण इत्यादि ग्रामों को गिरवी में देते हुए सिंधिया के इस प्रकार अधिकार में दे दिये कि उनकी आमदनी दोनों राज्यों के कर्मचारी वसूल करेंगे और वर्ष में एक बार उनका हिसाव हो जाया करेगा। इस तरह संधि होकर सिंधिया की शत्रुता का अंत हुआ। सरदार आदिलवेद के देटे का नाम मिर्जा अब्दुल रहीमवेग था। राणा ने मेवाड़-राज्य की तरफ से उसको 1. जागीर दी थी। 282