पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बूंदी से लौटकर आया। उसके आते ही सालुम्वर सरदार के साथ सिंधी लोगों के अत्वाचार समाप्त हो गये। राज्य में जो गड़बड़ी चल रही थी, अमरचंद से वह छिपी न थी। वह समझता था कि इस समय चारों तरफ विपदायें राज्य को घेरे हैं। उसने संकट के दिनों में कुमार हमीर के जीवन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा की। अमरचन्द एक योग्य और चरित्रवान आदमी था लेकिन संसार के बहुत से मनुष्य किसी अच्छे आदमी के बढ़ते हुए यश और वैभव को देख नहीं सकते। अमरचंद ने भयानक संकट के दिनों में जिस प्रकार मेवाड़ राज्य की रक्षा और सहायता की थी, उसमें उसकी प्रशंसा करने के स्थान पर बहुत से मेवाड़ के लोग उसके साथ ईर्ष्या करते थे। हमीर के बालक होने के कारण राज्य का शासन जिस राजमाता के हाथों में था, उसके विचारों को भी राज्य के लोगों ने अमरचन्द के प्रति दूषित बना दिया था। इस प्रकार की सभी बातों को अमरचन्द जानता था । अच्छे से अच्छे आदमी के साथ भी ईर्ष्या करने वाले मनुष्य पैदा हो जाते हैं और एक नेक आदमी के द्वारा जिन लोगों का अहित होता है, वही उसके विरोधी बन जाते हैं। अमरचन्द अच्छे काम कर सकता था, परन्तु वह दूसरों को प्रसन्न नहीं कर सकता था। उसने अपने पास की समस्त सम्पत्ति की एक सूची तैयार की और उसे उसने राजमाता के पास भेज दिया । बहुमूल्य मोती, सोना, चाँदी और हीरे जवाहरात के साथ अमरचन्द ने सूची बना कर अपने वस्त्रों को भी राजमाता के पास भेजा । राजमाता ने उसकी भेजी हुई बहुमूल्य सामग्री और सूची को देखकर आश्चर्य किया और अमरचन्द को सब-कुछ लौटा देने की चेष्टा की। परन्तु प्रयोग में लाये गये वस्त्रों को वापस लेकर शेष सब-कुछ अमरचन्द ने राजमाता के अधिकार में दे दिया। उसने ऐसा राजमाता के हृदय को विश्वासपूर्ण बनाये रखने के लिए किया और उसका प्रभाव उस समय राजमाता पर पड़ा भी। परन्तु वह कुछ ही दिनों के बाद बदल गया। इसमें राजमाता का अधिक अपराध न था। उसकी कमजोरी अवश्य थी। वास्तव में वह रामप्यारी नाम की एक स्त्री से प्रभावित थी और उस स्त्री का संबंध एक चरित्रहीन आदमी के साथ थां । जो लोग वहाँ पर अमरचन्द के विरोधी थे, उनके साथ उस आदमी का सम्बन्ध था। वह आदमी रामप्यारी को जितना पाठ पढ़ाता था, रामप्यारी उसी के अनुसार राजमाता को सोलह दूना बत्तीस पाठ पढ़ाया करती थी। रामप्यारी से सम्बन्ध रखने वाला वह व्यक्ति राणा का एक कर्मचारी था। सही बात यह है कि राजमाता उस कर्मचारी के हाथ की कठपुतली हो रही थी। अमरचन्द रात दिन राज्य की और नवयुवक हमीर के सम्मान की रक्षा का उपाय सोचा करता था। लेकिन इन बातों की चिंता करने वाला उन दिनों में मेवाड़ में दूसरा कोई न था। अमरचन्द के इस अच्छे कार्य में सहायकों की अपेक्षा विरोधियों का प्रभाव राजमाता पर अधिक काम कर रहा था और इस विरोध का सिलसिला उस चरित्रहीन कर्मचारी के द्वारा जारी होता था। अमरचन्द को इन सब बातों की खबर थी, परन्तु वह दरबार और महल की इन भीतरी बातों में नहीं पड़ना चाहता था। वह समझता था कि राज्य के सिर पर विपत्ति के बादल मँडरा रहे हैं और उनसे मेवाड़ की रक्षा करना मेरा कर्त्तव्य है। दूसरी बार अमरचंद के मंत्री होने के पूर्व मेवाड़ राज्य के जो लोग राणा अरिसिंह की अयोग्यता और निर्बलता का लाभ उठा रहे थे, वे सभी अमरचंद के विरोधी थे और राज्य की बिगड़ती हुई परिस्थितियों से विवश होकर जब राणा ने अमरचंद को फिर से मंत्री बनाया तो विरोधियों ने विद्रोही वातावरण उत्पन्न किया था। परन्तु राज्य के शुभचिंतक होने के कारण अमरचंद ने उसकी कुछ परवाह न की। अरिसिंह की मृत्यु के बाद बालक हमीर के सिंहासन पर बैठने और सत्ता राजमाता के हाथों में आने पर उन विरोधियों को फिर से 285