एक बार अवसर मिला। इन सब बातों को समझते और जानते हुए भी अमरचंद राज्य के हितों की रक्षा में प्रत्येक समय रहा करता था। राजमाता की अवस्था इन दिनों में बड़ी विचित्र थी। उसे अमरचन्द के विरुद्ध जो कोई भड़का देता, उसी पर वह विश्वास कर लेती । उसको अपनी भलाई और बुराई के समझने का ज्ञान न रहा । एक दिन रामप्यारी अमरचन्द के सामने आयी और उसने राजमाता की तरफ से कुछ ऐसी बातें अमरचन्द से कहीं, जो उसके सम्मान के सर्वथा विरुद्ध थीं। अमरचन्द ने उसे डाँट दिया। रामप्यारी वहाँ से लौट गयी और राजमाता के पास जाकर उसने अनेक झूठी बातें कहीं। राजमाता उन बातों को सुनकर क्रोध में आकर सालुम्बर सरदार के पास जाने को तैयार हुई। रामप्यारी के चले जाने पर अमरचन्द को कुछ आशंका मालूम हुई थी। वह अपने स्थान से उठकर चला गया और जाते हुए उसने रास्ते में राजमाता को पालकी पर जाते हुए देखा । अमरचंद ने नौकरों को राजमाता को राजमहल ले जाने का आदेश दिया । महल के पास पहुँचने पर अमरचन्द ने बड़ी नम्रता के साथ राजमाता से कहा – “आपने इस समय अपने महल से निकल कर अच्छा नहीं किया । राणा को मरे हुए अभी छ: महीने भी नहीं बीते । आपको अभी अपने महल से निकल कर कहीं जाना न चाहिए। ऐसा करना आपके प्रसिद्ध वंश के नियमों के विरुद्ध हैं। आप स्वयं बुद्धिमान हैं। मैं आपको समझाने की सामर्थ्य नहीं रखता । मैं आपका और आपके राज्य का शुभचिंतक हूँ। आपके राज्य पर संकट आने वाले हैं, मैं उनका सामना करने की चिन्ता में हूँ। मैं आशा करता हूँ कि मेरे इस कार्य में आप सहायता करेंगी।" अमरचन्द ने इस प्रकार बहुत-सी बातें नम्रता के साथ कही । लेकिन अमरचन्द का राजमाता पर कोई प्रभाव न पड़ा। उसने अमरचन्द को अपना विरोधी और शत्रु समझा और जो लोग उसकी झूठी प्रशंसा किया करते थे, उन्हीं पर वह विश्वास करती थी। अमरचन्द पर राजमाता का अविश्वास बढ़ता गया और उसी अविश्वास के फलस्वरूप उसने विष खिलवाकर मंत्री अमरचंद के प्राणों का संहार किया। इन दिनों में मेवाड़ राज्य के सम्मान की रक्षा करने वाला यही एक अमरचन्द था। वह चरित्रवान था और अपने देश की रक्षा करने के लिए प्रत्येक समय चिंतित रहता था। उसकी योग्यता और बुद्धिमता में कोई कमी न थी। उसमें लोकहित की अटूट भावना थी। इस प्रकार का योग्य और चरित्रवान व्यक्ति किसी भी देश के लिए आराध्य हो सकता था। मेवाड़ का दुर्भाग्य समीप आ गया था। इसीलिए वह राज्य ऐसे व्यक्ति का सम्मान न कर सका। पतन के दिनों में मनुष्य की वृद्धि की कीमत मानी जाती है। जब किसी परिवार, देश और राज्य का विनाश होने वाला होता है तो उस परिवार, देश और राज्य में अच्छे आदमियों के लिए स्थान नहीं रह जाता और वहाँ पर अयोग्य आदमियों का सम्मान बढ़ जाता है। इसीलिए उस राज्य में अमरचंद के त्याग और बलिदान का आदर उसके जीवन में न हुआ। विष देकर उसके प्राण लिए गए। उसने अपनी जिंदगी में राज्य के लिए अपना सर्वस्व दान कर दिया था। मरने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए भी पैसों का अभाव था। प्रसिद्ध मेवाड़ राज्य का प्रधानमंत्री होने के बाद भी उसकी मृत्यु एक दीन-दरिद्र की-सी हुई। अमरचन्द के जीवन का यह पीड़ामय दृश्य मेवाड़ राज्य के सर्वनाश का कारण बना। राजमाता ने अमरचन्द को अपना शत्रु समझा था। इसलिए उसका अन्त करके वह निरंकुश जीवन व्यतीत करना चाहती थी। उसे न मालूम था कि अमरचन्द के मरते ही राज्य में क्या होने वाला है। बड़ी बुद्धिमानी के साथ अमरचन्द ने शत्रुओं से मेवाड़ राज्य को सुरक्षित बना रखा था और मराठों के षड़यंत्रों से राज्य को बचाने में उसने सफलता प्राप्त की थी ।उसके मरने के बाद सम्वत् 1831 सन् 1775 ईसवी में बेगू सरदार ने राज्य पर । 286
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