पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२८७

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आक्रमण किया। उसको रोकने के लिए मेवाड़ में अव कोई शूरवीर न था। इसलिए राजमाता को उस सिंधिया से सहायता माँगनी पड़ी जो बहुत दिनों से मेवाड़ के विरुद्ध अवसर की ताक में था। वेगू एक मेघावत सरदार था। मेघावत वंश चूंडावत गोत्र की एक प्रधान शाखा सिंधिया की मराठा सेना ने मेवाड़ का पक्ष लेकर बेगू सरदार पर आक्रमण किया और उस सरदार ने मेवाड़ राज्य के जिन स्थानों पर अधिकार कर लिया था, उसने सरदार को हटा कर अपना अधिकार कर लिया और वेगू सरदार पर विद्रोह करने के अपराध में बारह लाख रुपये का जुर्माना किया। जुर्माने की इस सम्पत्ति को सिंधिया ने अपने हिस्से में रखा और रतनगढ़, खेड़ी, सिंगौली के प्रसिद्ध स्थान अपने जामाता वीर जी प्रताप को देकर इर्निया., जाठ, बिचूर और नदोई इत्यादि राज्य के अनेक प्रसिद्ध स्थान होलकर को दे दिये। इन इलाकों की वार्षिक आमदनी छ: लाख रुपये थी। मराठों ने मेवाड़ राज्य के इतने ही इलाकों पर अधिकार नहीं किया बल्कि सम्वत् 1830-31 और 36 में युद्ध की सहायता की कीमत में अत्याधिक संपत्ति की मांग मेवाड़ राज्य से की और उस संपत्ति की अदायगी न होने के कारण मराठों ने मेवाड़ राज्य के कई प्रसिद्ध इलाकों पर अधिकार कर लिया। राज्य के इन सर्वनाश के दिनों में अठारह वर्ष की अवस्था में सम्वत् 1834 सन् 1778 ईसवी में हमीर की मृत्यु हो गयी। मेवाड़ के राजाओं से भिन्न-भिन्न अवसरों पर मराठों ने जिस प्रकार रुपये लिये, वे इस प्रकार हैं . छियासठ लाख रुपये सम्वत् 1808 सन् 1752 ईसवी में राणा जगतसिंह से होलकर ने लिए। इक्यावन लाख रुपये सम्वत् 1820 सन् 1768 ईसवी में राणा अरिसिंह से माधव जी सिंधिया ने लिए। चौसठ लाख रुपये सम्वत् 1826 सन् 1870 ईसवी में राणा अरिसिंह से माधव जी सिंधिया ने लिए। इस प्रकार तीन बार में मेवाड़ के राजाओं से मराठों ने जो सम्पत्ति वसूल की, वह सब मिलाकर एक करोड़ इक्यासी लाख रुपये थी। इस नकद सम्पत्ति के सिवा सम्वत् 1808 से लेकर सम्वत् 1831 तक मेवाड़ राज्य के जितने इलाकों पर मराठों ने अधिकार कर लिया, उनकी वार्षिक आमदनी अट्ठाईस लाख, पचास हजार रुपये थी। मराठों के अधिकार में गये हुए इलाकों में रामपुरा, भनपुरा, जावद, जीरण, नीमच, नीम्बाहेड़ा, रतनगढ़, खेड़ी, सिंगौली, इर्निया, जाठ, बिचूर और नदोई प्रमुख थे। 287