1 पोरी लोग चन्द्रवंशी थे। अजमीढ़, देवमीढ़ और पुरमीढ़ नाम की शाखायें राजा हस्ती से सम्बंध रखती हैं। अजमीढ़ से उत्पन्न होने वाले भारत के उत्तरी भागों में पहुँच गये थे। वह समय ईसा से 1600 वर्ष पहले का मालूम होता है। अजमीढ़ के पश्चात् चौथी पीढ़ी में बाजस्व नामक राजा हुआ उसने सिंध नदी के समीपवर्ती सम्पूर्ण प्रदेश पर अधिकार कर लिया था। उसके पाँच वेटे हुए और उन पाँचों के नाम से उस प्रदेश का नाम पाञालिक 1 पड़ा। उसके छोटे भाई कम्पिल ने कम्पिल नगर नाम की राजधानी कायम की थी। अजमीढ़ की दूसरी स्त्री केशनी थी। उसके बेटों ने एक नया राज्य कायम किया और एक वंश चलाया । उसका नाम कुशिक वंश है। कुश के चार बेटे पैदा हुये। उसके एक पुत्र कुशनाभ ने गंगा किनारे महोदय नाम का एक नगर वसाया था। उसका नाम बाद में कान्यकुब्ज और फिर कन्नौज हो गया। सन् 1193 ईस्वी में शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमण के समय यह एक प्रतिष्ठित नगर था और उस समय गाधीपुर अथवा गाधी नगर कहलाता था। इतिहासकार फरिश्ता ने लिखा है कि प्राचीन काल में यह नगर पचास कोस अर्थात् पैंतीस मील के घेरे में वसा था और इस नगर में तीस हजार केवल तंबोलियों की दुकानें मौजूद थीं। उसकी यह अवस्था छठी शताब्दी तक वरावर कायम रही। बारहवीं शताब्दी में जयचन्द के बाद उस नगर का भी सर्वनाश हुआ। कुश के दूसरे पुत्र कुशाम्ब ने भी कौशाम्बी नामक नगर की प्रतिष्ठा की थी। ग्यारहवीं शताब्दी तक यह नगर वरावर कायम रहा। गंगा के किनारे कनौज से दक्षिण की तरफ उस नगर के खंडहर अब भी पाये जाते हैं। कुश के बाकी दो बेटों ने भी नगरों की स्थापना की थी परन्तु उनके कोई विवरण नहीं मिलते । कुश से सुधन्वा और परीक्षित नामक दो पुत्र पैदा हुए । प्रथम पुत्र का वंश जरासंघ के समय तक चला। उसकी राजधानी बिहार प्रांत में गंगा के किनारे राजगृह में थी। परीक्षित के वंश में शान्तनु और बलिक अथवा वाल्हीक राजा हुआ। युधिष्ठिर और दुर्योधन शान्तनु के वंशज थे और वाल्हीक राजा से जो पैदा हुए वे वाल्हीक पुत्र कहलाये। कुरु की राजगद्दी का उत्तराधिकारी दुर्योधन प्राचीन राजधानी हस्तिनापुर में रहा करता था लेकिन युधिष्ठिर ने जमुना के किनारे इन्द्रप्रस्थ नामक नगर बसाया था। उसका नाम बाद में वदल कर आठवीं शताब्दी में दिल्ली हो गया। वाल्हीक के पुत्रों ने पालिपोत्र और आरोड़ नामक दो राज्य स्थापित किये थे। पहला गंगा के किनारे और दूसरा सिन्धु नदी के किनारे था। चंद्रवंश के सभी राजा ययाति के प्रथम और छोटे बेटे यदु और पुरु के वंशज थे। ययाति के बाकी लड़कों के सम्बंध में कोई विवरण नहीं पाया जाता । उरु अथवा उरसु, जिसे कुछ विद्वानों ने तुरवसु लिखा है, ययाति के वंश की एक प्रसिद्ध शाखा है। उरु अपने राजवंश का मूल पुरुष था। उसके वंशजों ने अनेक राज्यों की स्थापना की थी। उससे आठवाँ राजा विमुत हुआ। उसके आठ पुत्र पैदा हुए लेकिन द्रुहा और बभ्रु नामक दो पुत्रों के सिवाय वाकी का कोई विवरण नहीं मिलता। इन दो पुत्रों से दो वंशों की शाखायें निकलीं । द्रुह्य के वंश में गान्धार और प्रचेता नाम के दो राजा हुए। उनके द्वारा भी एक-एक राज्य की स्थापना हुई। दुष्यन्त ने शकुन्तला के साथ विवाह किया था और भरत शकुन्तला का वेटा था। कालिंजर, केरल, पाण्ड्य और चोल नामक प्रपौत्र राजा दुष्यंत के पैदा हुए थे और उन्होंने शशविंधी शब्द शशक से सम्बंध रखता । सीसोदिया वंश की उत्पत्ति इसी वंश से मानी जाती है। सीसोदाग्राम में रहने के कारण वहाँ के लोग सीसोदिया अथवा शीशोसिया कहलाये, ऐसा भी कहा जाता 1. 30
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